‘चटक म्हारा चम्पा’ की अठारहवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
कोयल ती
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लागे रे
सूनी आँख्याँ रात दिन देख्याँ करू अकास
आती व्हे ने पूछ लूँ नाक्याँ करू निसॉंस
सूनो म्हारो पालणो कणे लड़ाऊ लाड़
म्हारा पियू का वंश पर कद बरसे आषाढ़
थारी लोरी हाँझ हवेराँ बैरण गड़वा लागे रे
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लागे रे
चोपायां में माँदकी की लागी रेलमपेल
भरी दुपेराँ लूटल्या मरग्या म्हारा बैल
एक तो म्हारों सायबो साँमद को लाचार
दूजे सवेराँ रोज ही घर अई जावे सहुकार
कर्जो लाचारी में घास-पूस ज्यूँ बढ़वा लागे रे
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लागे रे
आज रूप का बाग में मदन लगई दी आग
ओड़ बसन्ती ओढ़नी कोई खेली री फाग
पणघट ती चोपाल तक उड़र्यो अबीर गुलाल
डफ और चंग की चोट पर कूटईरी करताल
म्हारा पियूजी की खाली थाली में प्याला लड़वा लागे रे
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लांगे रे
कोयल अब मत गावजे तू धरती पर गीत
धरती का भगवान ने पलटी दी है रीत
आधी रोटी खावता पॉंच जणा मिल बैठ
आज मनक का मॉंस ती मनक भरी भरी र्या पेट
भूखा अन्दाता का हल धरती में अड़वा लागे रे
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लागे रे
मीठा थारा गीत ई अठे सुणेगा कृूण
अब तो खाटी खाँड है ने मीठो लागे लूण
महलाँ पर से देखजे दीखेगा शमशान
मनक मरे तो लाश ने चाखे है इन्सान
अब तो दिन ऊग्यॉं धरती पे अंधारो पड़वा लागे रे
थारा गीत कोयलिया म्हारा मन ने कड़वा लागे रे
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चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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