‘चटक म्हारा चम्पा’ की चौबीसवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
आयो बुलावो
घन दौलत और महल अटारी दुनियाँ का ई ठाठ
मन पंछी सब छोड़ ने चल प्रीतम की बाट
रूप जवानी देखवा रोके आज हजार
पियू बुलाबे प्राण ने तो कोई न्हीं रोकन हार
पी मिलवा को आयो बुलावो
आज पिया का चाकर आया
म्हाने झट पोंचावो
पी मिलवा को आयो रे बुलावो
जाँ के संग मैं खेल्या-कूद्या व्हाने खबर पठावो
जाती वेराँ मिल लो बेनाँ, आओ बधाई गावो
पी मिलवा को आयो बुलावो
जावो बजाजाँ के, चुनर लावो और म्हाने ओढ़ावो
माँग सिन्दूर, नैण में काजर, सतरंग रूप सजावो
पी मिलवा को आयो रे बुलावो
पहराई-ओढ़ाई ने मोकलो, मत कंजूसी लाओ
जामण जायो, ने जामण रोवे, व्हाने भी समझावो
पी मिलवा को आयो रे बुलावो
चार कहार उठावो डोली बाकी काँध लगावो
पी का नगर की पकड़ो डगरिया म्हाने पंथ बतावो
पी मिलवा को आयो रे बुलावो
आछा री जो बाबुल म्हारा अब मत नीर बहावो
जावे जवानी, उतरे पाणी, पियूजी से वेग मिलावो
पी मिलवा को आयो रे बुलानो
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चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
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