भवानी भाई के प्रति

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
'वंशज का वक्तव्य' की तीसवीं/अन्तिम कविता

यह संग्रह राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।



भवानी भाई के प्रति

चरण तुम्हारे छूकर
मुझको पहिली बार लगा है ऐसा
मानो मैंने
उस निस्सीम क्षितिज पर अपना
कलुषित माथा टिका दिया है
जिस निस्सीम क्षितिज को
कोई छू न सका था
मुझसे पहले!
मेरे मस्तक पर जो अक्षत्
लग जाते हैं यदा.कदा
वे सव हैं निर्माल्य तुम्हारे ही चरणों के!
देव!
तुम्हारी इस महिमा को
मैं प्रणाम भी कर न सकूँगा
कहीं तुम्हारे चरण छूट जायें इस डर से
हाथ नहीं उठ पाते मेरे!
खडे रहो तुम
पड़ा रहूँ मैं
युग को दिशा दायिनी
माँ कविता के शिला लेख पर
इस पीढ़ी की भाषा बन कर
युगों.युगों तक
जड़ा रहूँ मैं! जड़ा रहूँ मैं!! जड़ा रहूँ मैं!!!
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वंशज का वक्तव्य ;कविता संग्रहद्ध
कवि . बालकवि बैरागी
प्रकाशक . ज्ञान भारतीए 4ध्14ए  रूपनगर दिल्ली . 110007
प्रथम संस्करण . 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक . सरस्वती प्रिंटिंग प्रेसए मौजपुरए दिल्ली . 110053 



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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