नौजवानों आओ रे




श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
       ‘गौरव गीत’ का बारहवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 


नौजवानों आओ रे

                        नौजवानों आओ रे
                        लो कदम मिलाओ रे, लो कदम मिलाओ रे
                        नौजवानों आओ रे...

                                        - 1 -

                        ऐ वतन के नौजवानों, इस चमन के बागवानों
                        एक साथ बढ़ चलो, मुश्किलों से लड़ चलो
                        इस महान् देश को, नया बनाओ रे
                        नौजवानों आओ रे...

                                        - 2 -

                        धर्म की दुहाइयाँ, प्रान्त की जुदाइयाँ
                        भाषा की लड़ाइयाँ, पाट दो ये खाइयाँ
                        एक माँ के लाल, एक निशाँ उठाओ रे
                        नौजवानों आओ रे...

                                        - 3 -

                        विश्व को ईमान दो, मित्रता का दान दो
                        शान्ति का सिंगार दो, अहिंसा का दुलार दो
                        तुम जगत की आस, वीरवर! पुराओ रे
                        नौजवानों आओ रे...

                                        - 4 -

                        एक बनो, नेक बनो, खुद की भाग्य-रेख बनो
                        पंचशील के हो लाल, तुमसे ये जगत निहाल
                        शान्ति के लिये जहाँ को, गुदगुदाओ रे
                        नौजवानों आओ रे...

                                        - 5 -

                        माँ निहारती तुम्हें, माँ पुकारती तुम्हें
                       श्रम के गीत गाते आओ, हँसते-मुस्कुराते आओ
                        कोटि कण्ठ एकता के, गान गाओ रे
                        नौजवानों आओ रे...
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 

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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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