के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सत्ताईसवीं कविता
मेघा तो घिर आये गगन में, लेकिन राम रिसाये ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
इधर घटा है, उधर घटा है, घटा ही घटा, चहुँ ओर घटा
नाचे मोर के संग मोरनी, अन्तर के पट हटा-हटा
धरती का हर कण गदराया, जित देखूँ तित हरा-हरा
ताल, तलैया, सरवर, पोखर, सबका पनघट भरा-भरा
मैं पनघट पर पंथ निहारूँ
गगरी कौन उठाए ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
लाख-लाख अनमोल सन्देसे, लेकर ये घनश्याम चले
चतुर दूत, जलनिधि के पूत ये, लगते हैं मन के उजले
पल में गरजें, पल में बरसें, फोड़ रहे मन के छाले
देख इधर मेरी अँखियों में, ढुलक गये अरबों प्याले
इन परलय करती पलकों की
मावस कौन सुखाये ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
मेघ मल्हारें गूँज रही हैं, हर झुरमुट अमराई में
दर्द उँडेल दिया दादुर ने, ले पगली पुरवाई में
पात-पात से गात-गात पर, रस की बूँदें झरर झरे
विवश अभागन, ये बैरागन, बता निठारे! जिये, मरे
अपने हाथों तेरी साँवरी
कब तक लट सुलझाये ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
दर्शन दुर्लभ हुए चाँद के, पूनो बन गई मावस रे
नहीं कटे इन कजरारी अँखियों में कजरी पावस रे
हरियाली में ओझल हो गई, ये पगडण्डी टेढ़ी रे
इधर निहारूँ, उधर निहारूँ, कर-कर ऊँची ऐड़ी रे
कौन भरे मुझको बाँहों में
चन्दा कौन दिखाये ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
खेत-खेत में अंकुर फूटे, रीते तेरे खेत पड़े
पंख-पंखेरू करे ठिठोली, हँसे मुसाफिर खड़े-खड़े
अपमानों और उपहासों में, बोल बता मैं क्या बोलूँ
तानों के बदले में आँसू, कब तक दूँ, कब तक तोलूँ
ऋतु भी रुलाये, तू भी रुलाये
मुझको कौन हँसाये ओ राम!
सावन सुलग गयो बंजारे, लागी कौन बुझाये ओ राम!
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
जी बहुत ही सुन्दर। अद्भुत लय इन पंक्तियों में।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteकोरोना काल में, मानो जड़ मनोदशा में आ गया हूँ। इसी के चलते, आपकी यह महत्वूपर्ण टिप्पणी आज देख पाया। क्षमा कर दीजिएगा।
बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteकोरोना काल में, मानो जड़ मनोदशा में आ गया हूँ। इसी के चलते, आपकी यह महत्वूपर्ण टिप्पणी आज देख पाया। क्षमा कर दीजिएगा।
खूबसूरत मोहक रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteकोरोना काल में, मानो जड़ मनोदशा में आ गया हूँ। इसी के चलते, आपकी यह महत्वूपर्ण टिप्पणी आज देख पाया। क्षमा कर दीजिएगा।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteकोरोना काल में, मानो जड़ मनोदशा में आ गया हूँ। इसी के चलते, आपकी यह महत्वूपर्ण टिप्पणी आज देख पाया। क्षमा कर दीजिएगा।
'पॉंच लिंकों का आनन्द' पर जाता हूँ।