नरक दुवारे जाऊँगा ही

श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की नौवीं कविता



मृत्यु लोक का मनुज अपूरण, मैं कमजोरी का पुतला

स्वर्ग अगर ठुकरायेगा तो नरक दुवारे जाऊँगा ही


मेरे जैसे जितने भी तन इस दुनिया में आते हैं

इस बनजारे मन के हाथों सभी विवश हो जाते हैं

विवश किया है मुझको भी इस पगले मन ने, जीने को

(तो) सागर के तट पर आया हूँ मैं भी अमृत पीने को


अभी तलक तो देव-पुत्र हूँ, अमृत का अधिकारी हूँ

(पर) देव अगर तरसायेगा तो राहू तो कहलाऊँगा ही

                                        नरक दुवारे जाऊँगा ही।



चरम सत्य का मैं अन्वेषक, आराधक शिव-सुन्दर का

दर्द पराया पीना अब तक धर्म रहा मेरे अन्तर का

इसी दाँव पर हार गया हूँ मैं अपना यह जीवन सारा

बलि-पथ पर ही मुझे मिल गया प्राण! अचानक द्वार तुम्हारा


मेरा धरम तड़प कर तुमसे, पीर तुम्हारी माँग रहा है

(पर) कामधेनु कतरायेगी तो बकरी तो दुहवाऊँगा ही।

                                        नरक दुवारे जाऊँगा ही।



पग-पग पर हैं चोर ठगारे, फिर भी मुझको जाना है

साँसों की यह निर्धन गठरी, मरघट तक पहुँचाना है,

तुम क्या जानो कितना भारी बोझा मेरे माथे है

कितने भारी दिन हैं मेरे, कितनी भारी रातें हैं


राह सुलभ करने को मेरी, अपनी पूनम दे भी दो

तुम यदि चाँद छिपाओगे तो, मावस गले लगाऊँगा ही।

                                        नरक दुवारे जाऊँगा ही।



मुझे शिकायत नहीं रही है अब तक अमर, अमीरी से

तुम तो भली-भाँति परिचित हो, मेरी मस्त फकीरी से,

मन की राहों पर जाता हूँ औ’ मन की राहों आता हूँ

दर-दर पर मैं अलख जगा कर, अपनी मस्ती गाता हूँ,


दुनिया से डर कर तुम चाहे अपना द्वार छुड़ा लेना

(पर) पौरुष यदि आजमाओगे तो, दुनिया नई बसाऊँगा ही।

                                        नरक दुवारे जाऊँगा ही।



तन से यदि कुछ भूल हुई हो, तब तो मैं अपराधी हूँ

मन से तो मैं ही क्या बोलूँ, पहले ही मन-वादी हूँ,

मन ने जो कुछ कर डाला है, उस पर है अभिमान मुझे

चाहे देवल अपमानित हो या चाहे शमशान पुजे,


चरण धूलि हूँ, पड़ा हुआ हूँ, दुर्बल देह लिए पथ पर

फिर भी यदि ठुकराओगे तो, सिर-आँखों पर आऊँगा ही।

                                        नरक दुवारे जाऊँगा ही।

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963












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