किसी राजा ने कभी धर्म युद्ध नहीं लड़ा

भाईचारे का इतिहास - पहली कड़ी

(डॉक्टर महरउद्दीन खाँ का यह लेख, भोपाल से प्रकाशित ‘मध्यप्रदेश लोक जतन’ के, दिनांक 1 जून 2001 के पृष्ठ 11 पर प्रकाशित हुआ था।)


धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों की हर समय यह कोशिश रहती है कि भारत के इतिहास को साम्प्रदायिक बनाकर पेश किया जाए। बाबर-राणा सांगा की लड़ाई हो या अकबर-महाराणा प्रताप की या शिवाजी और औरंगजेब की। ये लोग राणा सांगा, महाराणा प्रताप और शिवाजी को हिन्दू बनाकर पेश करते हैं तथा बाबर, अकबर और औरेंगजेब को मुसलमान बना कर। सही बात तो यह है कि राजा, राजा होता था, उसकी सेना में हिन्दू-मुसलमान सभी होते थे। जब राजा को मौका मिलता था, वह हिन्दू-मुसलमान सभी के साथ लूटमार करते थे। मन्दिर ज्यादा इसलिये लूटे जाते थे कि वहाँ सोना-चाँदी और धन जमा होता था। मस्जिदों में ऐसा कुछ न पहले होता था, न अब होता है। राजाओं का काम अपने राज्य का विस्तार करना होता था। उनके रास्ते में जो भी आता था, वह उन का दुश्मन होता था। अगर राजाओं का धर्म से कुछ लेना-देना होता तो कोई हिन्दू राजा किसी हिन्दू राजा पर हमला नहीं करता और न ही कोई मुसलमान राजा किसी मुसलमान राजा पर हमला करता। साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाले लोग राजाओं को भी धर्म का रखवाला बना कर पेश करते हैं। राजाओं का काम ज्यादा से ज्यादा इलाका अपने कब्जे में करना होता था। वे ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूल करके अय्याशी करना चाहते थे।


राणा सांगा

औरंगजेब

किसी राजा ने कभी धर्मयुद्ध नहीं लड़ा। अगर किसी राजा के बारे में ऐसा कहा जाता है तो वह झूठ है। धार्मिक स्थानों को तोड़ने की बात है तो पहले न तो ईंट भट्टे थे न सीमेण्ट के कारखाने और न पत्थर तराशने के कारखाने। एक स्थान का मलबा दूसरे में प्रयोग करना आम बात थी। धार्मिक रंग देकर अपनी राजनीति करने वालों की पता चाहिए कि राजतन्त्र का बदला लोकतन्त्र में नहीं लिया जा सकता।

यहाँ एक बात बड़ी मजेदार है कि साम्प्रदायिक ताकतों का इतिहास बाबर से शुरु हो कर औरंगजेब पर खत्म होता है। फिर मुस्लिम लीग के जन्म से देश के बँटवारे पर खत्म हो जाता है। बाबर से पहले का समय इनके इतिहास का विषय नहीं है, न ही अंग्रेजों की गुलामी और उनके द्वारा दी गयी गुलामी की निशानियाँ इनके इतिहास में हैं।

हम बाबर से शुरु करते हैं।

बाबर

बाबर के साथ लड़ाई में राणा सांगा अकेला नहीं था। हसन खाँ मेवाती और महमूद लोदी भी उसके साथ थे। इब्राहीम लोदी का भाई सुल्तान अहमद लोदी भी बाबर से लड़ने के लिए राणा के झण्डे के तले आ गया था। इस तरह से बाबर के खिलाफ लड़ाई में उस समय भारत के हिन्दू और एकजुट थे।

बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूँ राजा बना। शेरशाह के हमले के समय ब्रह्माजीत गौड़ उसका पीछा कर रहा था उस समय अटेल के राजा वीरभान ने हुमायूँ को नदी पार कराई थी। वीरभान ने अपनी सहायता की भावना से यह काम किया था। अगर उसमें हुमायूँ के धर्म के बारे में कोई गलत विचार होता तो वह उसे वहीं खत्म कर सकता था। 

हुमायूँ 

हुमायूँ जब अमरकोट पहुँचा तो राजपूतों और जाटों की सेना ने उसे भरपूर मदद पहुँचाई थी। हुमायूँ ने जब अमरकोट छोड़ा तो उसकी बेगम हमीदा बानो गर्भवती थी तथा पूरे दिन से थी। इसलिए उसने बेगम को वहीं राजपूत स्त्रियों के पास छोड़ दिया। यहीं पर हुमायूँ के जाने के तीन दिन बाद अकबर का जन्म हुआ था। अमरकोट के राजा ने हुमायूँ की बेगम की देखभाल अपनी बेटी की तरह की थी।

(सभी चित्र गूगल के सौजन्य से साभार।)

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