भाईचारे का इतिहास - तीसरी कड़ी
(डॉक्टर महरउद्दीन खाँ का यह लेख, भोपाल से प्रकाशित ‘मध्यप्रदेश लोक जतन’ के, दिनांक 1 जून 2001 के पृष्ठ 11 पर प्रकाशित हुआ था।)
अकबर के बेटे सलीम के विद्रोह में भी हिन्दू-मुसलमान दोनों सलीम के साथ थे। ओरछा के सरदार बीर सिंह देव ने अबुल फजल को मार दिया था। जिस पर गुस्सा होकर अकबर ने बीर सिंह देव को मारने का फरमान जारी कर दिया। तब सलीम ने बीर सिंह देव का साथ दिया और उसे बचा लिया था। यही नहीं, अकबर की मृत्यु के बाद जब सलीम, जहाँगीर के नाम से गद्दी पर बैठा तो उसने बीर सिंह देव को अपने दरबार में ऊँचा ओहदा भी दिया।
जहाँगीर के शासन में जब बीकानेर के पाँच हजारी मनसबदार राम सिंह ने विद्रोह किया तो इसे दबाने के लिए अम्बर के राय जगन्नाथ कछवाहा को भेजा गया। इसी तरह उड़ीसा के राजा पुरुषोत्तम दास को हराने के लिए टोडरमल के पुत्र कल्याण सिंह को भेजा गया था।
गलती करने पर जहाँगीर किसी मौलवी के साथ भी रियायत नहीं करता था। जहाँगीर ने मूर्खतापूर्ण उपदेश देने पर शेख इब्राहीम बाबा को चुनार में और शेख अहमद बाबा को ग्वालियर की कैद में डाल दिया था। जहाँगीर के दरबार में चित्रकार बिशनदास और हिन्दी विद्वान जदरूप गोसाई तथा राम मनोहर लाल को काफी सम्मान मिला हुआ था।
जहाँगीर ने हिन्दुओं को मन्दिर बनाने की पूरी छूट दी थी। उन्हें बिना कोई कर अदा किए धार्मिक यात्राएँ करने की छूट भी दी थी। इस तरह जहाँगीर को किसी भी हालत में साम्प्रदायिक नहीं कहा जा सकता। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘भारत की खोज’ में, जहाँगीर को आधा मुगल और आधा राजपूत बताया है।
जहाँगीर के बाद शाहजहाँ ने भी हिन्दू-मुसलिम एकता की मशाल को जलाए रखा। शाहजहाँ के समय कमलाकर भट्ट ने ‘निर्णय सिन्धु’ की रचना की। कवीन्द्राचार्य ने ऋगवेद की व्याख्या लिखी, नित्यानन्द ने ज्योतिष शास्त्र के ग्रन्थ लिख। पण्डित जगन्नाथ ने दारा शिरोह और आसफ खान की प्रशंसा में कविताएँ लिखीं। हिन्दू विधि-विधान के लेखक मित्र मिश्र भी शाहजहाँ के ही समय में फले-फूले थे।
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(दोनों चित्र गूगल से साभार।)
भाईचारे का इतिहास - चौथी कड़ी यहाँ पढ़िए
भाईचारे का इतिहास - पाँचवीं/अन्तिम कड़ी यहाँ पढ़िए
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