जबरिया मुसलमान बनाने का विरोध किया औरंगजेब ने

 भाईचारे का इतिहास - पाँचवीं/अन्तिम कड़ी

(डॉक्टर महरउद्दीन खाँ का यह लेख, भोपाल से प्रकाशित ‘मध्यप्रदेश लोक जतन’ के, दिनांक 1 जून 2001 के पृष्ठ 11 पर प्रकाशित हुआ था।)


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नफरत की जो चिंगारी आज फैलाई जा रही है वह मुगलों के शासन काल में नहीं थी। 

गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में 1588 में एक तालाब खुदवाया और एक मन्दिर की आधार शिला एक मुसलमान भक्त मियाँ पीर (बाला पीर) ने रखी थी। सुलतान जैनुल आबदीन ने अमरनाथ और शारदा देवी मन्दिर में यात्रियों की सुविधा के लिए कई भवन बनवाए थे। नजीबाबाद के पठानों ने 1780 ईस्वी में अपने शायन के दौरान तीर्थयात्रियों के लिए बड़े-बड़े भवन बनवाए थे। दिल्ली के सम्राट मोहम्मद शाह ने बोधगया (बिहार) के महन्त को एक बड़ी जायदाद देने का फरमान जारी किया था। 

गुरु अर्जुन देवजी

औरंगजेब ने इलाहाबाद में महेश्वरनाथ मन्दिर के पुजारी की रकम देकर सहायता की थी। इसी तरह बलभद्र मिश्र, जादव मिश्र और गिरधर को भी धन दिया था। मुलतन के तुलई मन्दिर के एक पुजारी कल्याण दास को भी सैंकड़ों रुपये अनुदान दिया था। बाद में सुल्तान मुहम्मद मुराद बक्ष ने उज्जैन के मन्दिर में दीपक जलाने के लिए चार सेर घी हर माह देने का फरमान जारी किया था। दक्षिण के अनेक मन्दिरों के लिए भी अनुदान देने के फरमान जारी किए गए थे।

औरंगजेब पर एक आरोप यह भी है कि वह लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाता था। सबूत बताते हैं कि ऐसा नहीं था। एक सबूत यहाँ पेश है। औरंगजेब के पिता शाहजहाँ ने बनघेरा के राजा इन्द्रमन को कैद कर लिया था। औरंगजेब ने इन्द्रमन को आजाद करने की सिफारिश शाहजहाँ से की।

शाहजहाँ ने शर्त लगाई कि अगर इन्द्रमन मुसलमान बन जाए तो उसे छोड़ा जा सकता है। औरंगजेब ने इस शर्त को ठीक नहीं माना। उसने अपनेपिता की इस शर्त का विरोध किया। औरंगजेब का यह विरोध-पत्र अदब-ए-आलमगीरी में सुरक्षित है।

भारत की गुलामी का दौर सही मायने में अंग्रेजों के शासन से ही शुरु होता है। मुगल विदेशी थे मगर यहाँ आने के बाद वे यहीं के होकर रह गए। एन्होंने जो कमाया, यहाँ की जनता पर, यहीं खर्च किया। यहाँ की दौलत को लूट कर देश से बाहर नहीं ले गए।

मुगलों ने न यहाँ का धर्म बिगाड़ा, न भाषा बिगाड़ी, न संस्कृति, न खान-पान, पहनावा बिगाड़ा। इस देश से उन्हें कितना प्यार था इस की झलक अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की इन पंक्तियों से मिलती है 

है कितना बदनसीब जफर दफन के लिए
दो गज जमीं भी न मिली कुए यार में

1857 में आजादी की पहली लड़ाई में आजादी के दीवानों ने बहादुरशाह जफर को ही अपना राजा माना था। बहादुरशाह जफर का देशप्रेम देखिए कि उसके जवान बेटों के सर कलम कर उसे पेश किए गए और उसने उफ् तक न किया। बहादुरशाह जफर को अंग्रेजों ने रंगून जेल में डाल दिया। कैदी बना यह बादशाह भारत में दफन होना चाहता था मगर वह भी उसे नसीब न हो सका

बादशाह बहादुरशाह जफर

इस बादशाह की पहले से तैयार की गयी खाली कब्र आज भी महरौली में मौजूद है। जिन अंग्रेजों ने हमारा खान-पान-पहनावा और भाषा तक हम से छीन ली और जिन्होंने भारत को भिखारी बना को दिया, उनके खिलाफ ये साम्प्रदायिक लोग एक शब्द बोलना भी पसन्द नहीं करते। दरअसल अंग्रेजों ने दोनों धर्मों के बीच विष-बीज बोने के लिए इतिहास को तोड़ना-मरोड़ना शुरु कर दिया। साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाले आज अंग्रेजों की इसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। वे भी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलते थे। ये भी उसी नीति पर चल रहे हैं। आज इतिहास की सही जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है। 

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(पहला चित्र गुरु अर्जुन देवजी, दूसरा चित्र बादशाह बहादुर शाह जफर। 
दोनों चित्र गूगल से साभार।)

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