कल, 27 सितम्बर को विश्व पर्यटन दिवस’ था, यह मुझे एक दिन बाद, आज 28 सितम्बर को मालूम हो पाया। यह मालूम होते ही मुझ ‘खोर’ की स्मृति हो आई।
पुरातत्व मेरा विषय कभी नहीं रहा। लेकिन पुरातात्विक स्थानों पर जाना मुझे अच्छा लगता है। ‘खोर’ भी एक पुरातात्विक स्थल है। ‘खोर’, मध्य प्रदेश के नीमच जिले की जावद तहसील का छोटा सा गाँव है। मेरी बुआजी की एक बेटी, धापू जीजी जावद ही ब्याही थी। वहाँ आना-जाना हुआ करता था। तब हम लोग मनासा से नीमच पहुँच कर, रेल से केशरपुरा रोड़ रेल्वे स्टेशन उतरते थे। वहाँ से जावद जाते थे। केशरपुरा रोड़ का नाम अब नया गाँव रेल्व स्टेशन हो गया है। केशरपुरा रोड़ (याने आज के नया गाँव) से जावद जाते हुए रास्ते में खोर पड़ता है। पिताजी यहाँ के तोरण और नन्दी के बारे में बताया करते थे। पिताजी दो-एक बार हमें खोर ले गए थे तभी यह जगह देखी थी।
अभी, इसी बरस मार्च में चित्तौड़गढ़ जाना हुआ। मेरी चार भानजियों में सबसे छोटी भानजी रीती श्रवण वैष्णव के सुसरजी के निधन के प्रसंग पर। लौटते में हम जावद आते हुए आए। जावद में हमें, मेरी दूसरे नम्बर की भानजी माया, जमाई आनन्दजी और इनकी बिटिया झुनझुन से मिलना थाा निम्बाहेड़ा पार करते ही मुझे खोर याद आया और वहाँ रुकना तय किया। निम्बाहेड़ा से खोर पहुँचते-पहुँचते मैंने खोर के बारे में बातें शुरु की तो उत्तमार्द्धजी मुझसे अधिक उत्सुक और बेचैन हो गईं।
खोर में हम लोग कोई पौन घण्टा रुके। देखने के लिए कुल एक स्थान और गिनती के स्मारक। लेकिन पाषाण शिल्पों ने कुछ ऐसे मोहा और टटकाया कि मालूम ही नहीं हुआ कि कब पैंतालीस मिनिट निकल गए।
उसी समय लिए गए, तोरण और नन्दी के कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं।
मुझे खोर के बारे में और तोरण-नन्दी के बारे में कोई जानकारी नहीं। वहाँ के परिचय शिलालेख पर जो लिखा, वही मेरी भी जानकारी है। वहाँ पत्थर पर, हिन्दी और अंग्रेजी में उकेरे गए परिचय की इबारत यहाँ जस की तस दे रहा हूँ।
आप जब भी सड़क के रास्ते, नीमच-महू रास्ते से निम्बाहेड़-चित्तौड़गढ़ जाएँ तो खोर अवश्य जाएँ। नीमच से थोड़ा सा रास्ता बदल कर, जावद होते हुए निम्बाहेड़ा जाएँगे तो जावद से कुछ ही किलोमीटर पर खोर आता है।
खोर सर्वथा उपेक्षित, अनदेखा स्थान है। लगता है, सुन्दर आकृतियों और सुन्दर नक्काशी से अंलकृतयह नव तोरण मन्दिर सुनसान वीरान में खड़ा मानो खुद से एकालाप कर रहा है या अपने बारे में बताने के लिए आपकी बाट जोह रहा होा इसका जिक्र भी कहीं नहीं मिलता। इसके बारे में कोई साहित्य भी उपलब्ध नहीं है। छोटा सा गाँव है। यहाँ चाय-पानी की भी व्यवस्था नहीं है। लेकिन आपको किसी सुविधा की आवश्यकता शायद ही पड़े। यहाँ देखने की एक ही जगह है। घूम-फिर कर देखने जैसी कोई बात ही नहीं है। कुछ ही मिनिटों का मामला है।
उम्मीद है, चित्र आपको निराश नहीं करेंगे।
सड़क से ऐसा दिखता है नव तोरण मन्दिर
परिचय शिलालेख और इस पर उकेरी गई इबारत
नव-तोरण मन्दिर, खोर
नवतोरण ग्यारहवीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण अवशेष है। यह दो पंक्तियों से व्यवस्थिति दस आलंकारिक महराबों से निर्मित है। इन पंक्तियों में से एक लम्बाई में तथा दूसरी चौड़ाई में है और ये केन्द्र में एक दूसरे को काटती हैं। ये सभा-भवन तथा अर्द्ध मण्डपों में स्तम्भ-युग्मों पर आश्रित हैं। यह मन्दिर पत्राकृति सीमान्त, मकरमुख तथा मालाधारी आदि अलंकरणों से सज्जित है।
NAVA-TORAN TEMPLE
AT KHOR
NAV-TORAN IS AN IMPORTANT REMNANT OF THE
ELEVENTH CENTURY. IT CONSISTS OF TEN DECORATIVE ARCHES ARRANGED UN TWO ROWS,
ONE LENGTH-WISE AND THE OTHER WIDTHWISE. CROSSING EACH OTHER AT THE CENTRE AND SUPPORTED
ON A PAIR OF PILLARS IN THE HALL AND PORCHES. THE TEMPLE IS DECORATED WITH
LEAF-SHAPED BORDERS, HEADS OF MAKARAS, GARLAND AND BEARERS ETC.
तोरण द्वारों के कुछ चित्र
नक्काशी से अलंकृत नन्दी
तोरण द्वारों के खम्भों पर उकेरी गई कुछ आकृतियाँ
वाह! हमारा मंदसौर नीमच जिला इतना धनी है। 👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-09-2018) को "पावन हो परिवेश" (चर्चा अंक-3109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteपर्यटन विभाग और पत्रकार बंधुओं ने इसका पर्याप्त प्रचार प्रसार किया होता तो ये स्थान भी लोकप्रिय हो गया होता । मैं स्वयं नयागांव पांच महीने रहा,लेकिन इस जगह की जानकारी नहीं मिली । खोर को मैं सीमेंट फैक्ट्री के लिए ही जनता रहा हूँ ।
ReplyDeleteतुम 'प्रचण्ड बहुमत'में शामिल हो।
Deleteआपकी यायावरी कमाल है, बिल्कुल सही जगह के बारे में बताया दादा, तोरण से लगता है ये जैन धर्म के विस्5अर के समय निर्मित हुये होंगे।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा यात्रा वर्णन, पढ़कर मन भावुक हो गया
ReplyDeleteकैसे हम अपनी धरोहर को खोते जा रहे हैं।
बहुत ही अच्छी जानकारी आदरणीय
आभार
सादर
सुन्दर चित्र और वर्णन
ReplyDeleteआपकी अतुल्य लेखन शैली में लिपटी हुई अनूठी जानकारी, साथ में दिए हुए चित्रों में मैं पूरी तरह से खो सा गया, नंदी की आकृति कुछ भिन्न सी लगी, अत्यंत सुन्दर शिल्पकारी, आपने इस समृद्ध विरासत से परिचय कराया आपका अनेकों धन्यवाद और आभार
ReplyDeleteनयागांव स्टेंशन को जावद रोड कहा जाता है
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