बालकवि बैरागी : कीचड़ में रहकर कमलवत विदेहता

ख्यात प्रगतिशील, जनवादी कवि शिव कुमारजी अर्चन का  निधन  अभी-अभी,  
05 जुलाई 2022 को हो गया। दादा को लेकर उनकी ये बातें, ‘नंदा बाबा: फकीर से वजीर’ पुस्तक में मिलीं।

कहावत है कि नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है। उन दिनों अपना भी यही हाल था। कविता लिखने का नया-नया शौक चर्राया था तथा पढ़ने का भी। गीतधर्मी होने के कारण मुझे छन्दमय रचनाएँ अधिक रुचती थीं। यह सत्तर के दशक का पूर्वार्द्ध था। उन दिनों कवि सम्मेलनों की धूम थी और जनमानस में ऐसी व्याप्ति थी कि कवि सम्मेलन के नाम से हजारों-हजार श्रोता कविता का रसपान करने दूर-दराज से आते थे और भोर की किरण तक कविताओं का छक कर आनन्द लिया करते थे। बालकवि बैरागी उन दिनों काव्य मंचों का चर्चित एवं स्थापित नाम था। कवि सम्मेलन में उनका होना सफलता की गारण्टी माना जाता था। उन्हें सुनने की मन में बहुत लालसा रहती थी, लेकिन ऐसा सुयोग नहीं मिल पा रहा था। इसी बीच उनका काव्य संकलन ‘दो टूक’ पढ़ने में आया, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक, ओज और प्रेमपरक रचनाएँ संकलित थीं। इस संकलन ने मेरी प्यास कुछ और बढ़ा दी। इसका समाहार शायद पचहत्तर-छिहत्तर में आयोजित सीधी कवि सम्मेलन में हुआ। उस कवि सम्मेलन में नीरज, काका, निर्भय, बैरागीजी, अनवर मिर्जापुरी, शम्सी मीनाई जैसे दिग्गज कवि आमन्त्रित थे। उसमें मैं भी एक नौसिखिया युवा कवि के रूप में बुलाया गया था। दिग्गजों के बीच कविता पाठ करने के नाम से ही मेरे पसीने छूट रहे थे। मुझे याद है कि मेरी इस मनोदशा को भाँपकर उन्होंने मेरी हिम्मत बढ़ाई थी और मंच पर भी और कविताएँ सुनाने का आग्रह किया था। सम्मेलन में छोटे कद के बैरागीजी का प्रभाव बहुत बड़ा था। खादी की धोती और खादी के ही सफेद कलफदार कुर्ते में उनका व्यक्तित्‍व सबसे अलग था। पतली कलफदार आवाज में उनकी ‘कोई इन अंगारों से प्यार तो करे’, ‘लगे हाथ निपटा ही देते पिण्डी और लाहौर का’”, ‘नवी उमरिया नवी डगरिया’ जैसी कविताओं ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया था। कवि सम्मेलन के बाद उन्होंने मेरे काव्यपाठ की सराहना की। आशीष दिया तथा और अच्छा लिखने की प्रेरणा भी दी। अमूमन मंच के बड़े कवि ऐसा कम ही करते हैं। इसके बाद तो कई काव्य मंचों पर उनका सान्निध्य मिला। उनका स्नेह अबाध रूप से मुझ पर बरसता रहा।

दो-चार काव्य मंचों पर तो मेरे काव्य पाठ से पहले उन्होंने श्रोताओं से मुझे विशेष रूप से सुनने का आग्रह तक किया। बैरागीजी अक्सर काव्य मंचों पर अपनी दीनता, अपने संघर्ष और भिक्षाटन की बात कहते थे, जो मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता था। मुझे याद है एक बार मैंने उनसे इस बारे में पूछा था कि आप ऐसा क्यों बार-बार कहते हैं। क्या श्रोताओं की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए या उनका मन जीतने के लिए? इस पर उनका दिया हुआ उत्तर मुझे आज तक याद है। उन्होंने कहा था-श्रोताओं का मन जीतने के लिए तो मेरी कविताएँ ही काफी हैं। मैं अपने संघर्ष के दिनों को बार-बार इसलिए याद करता हूँ कि मैं भूल न जाऊँ कि मैं किस जमीन से आया हूँ और ये सत्ता मेरे साहित्य पर हावी न हो जाए। यह सुनकर मुझे दो टूक की भूमिका का स्मरण हो आया, जिसमें उन्होंने लिखा था ‘मन्त्रीपद अस्थाई मामला है, अतः अपना स्थायी पता ही दे रहा हूँ।’ 

कीचड़ में रहकर सदैव कमलवत रहने की इस विदेहता को प्रणाम ही किया जा सकता है।

-----

पुस्तक में उपलब्ध अर्चनजी का पता -
70, प्रियदर्शिनी, ऋषि वैली,
ई-8 गुलमोहर एक्सटेंशन,
भोपाल-462039



नंदा बाबा : फकीर से वजीर
ISBN 978.93.80458.14.4
सम्पादक - राजेन्द्र जोशी
प्रकाशक - सामयिक बुक्स,
          3320-21, जटवाड़ा, 
    दरियागंज, एन. एस. मार्ग,
    नई दिल्ली - 110002
मोबाइल - 98689 34715, 98116 07086
प्रथम संस्करण - 2010
मूल्य - 300.00
आवरण - निर्दोष त्यागी



यह किताब मेरे पास नहीं थी। भोपाल से मेरे छोटे भतीजे गोर्की और बहू अ. सौ. नीरजा ने उपलब्ध कराई।  

 


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.