रामबाण की पीड़ा




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की बत्तीसवीं कविता 




रामबाण की पीड़ा

राम मेरे!
हो गया वनवास पूरा
लौट आए तुम अयोध्या में
विजेता बन
मन गईं दीवालियाँ सारे अवध में
हो गया हर शत्रु का सन्धान-वध।
शेष अब कुछ भी नहीं है
जो तुम्हारे शौर्य या सन्धान का
कारण बने।
अब
राज्य को दोगे नया ही नाम
जिसको लोग कहकर गर्व से
उन्मत्त होंगे, राज्य है यह राम का,
यानी कि संज्ञा से विशेषण
या विशेषण से कसौटी
जो कहाए-‘रामजी का राज्य’।
और फिर होगा वही सब
जो सुनिश्चित है,
वनवास माता जानकी को फिर,
पुनः सामना अपने स्वयं के अंश से।
और सीता का, सुयश के बाद
अपनी माँ- धरा की गोद पाना
फिर तुम्हारा शेष जीवन
ग्लानि से भरकर बिताना।
छटपटाना, तिलमिलाना
किन्तु मर्यादा निभाना।
और फिर चुपचाप-एकाएक
पुण्य-सलिला मातु सरयू के किनारे
जा खड़े होना
जल-समाधि के लिए।
लोग जय-जयकार में
धन्य हो प्रभु! धन्य हो!
तुमको कहेंगे
चल पड़ोगे तुम अगम जलराशि में।
शस्त्र अपने सब रखोगे वहीं तट पर
और ‘मै’, हाँ! हाँ! तुम्हारा ‘रामशर’
तट पर पड़ा रह जाऊँगा
तूणीर में।
कोसता, रोता रहूँगा दैव!
इस दुर्भाग्य पर,
मैं तुम्हारी पीठ पर तूणीर में
निष्प्राण ही करता प्रतीक्षा
रात-दिन सिसका किया
कि आज तुम सन्धान में
मुझको वरोगे, जन्म मेरा भी सफल
सार्थक करोगे।
किन्तु मेरे राम!
मैं लदा बैठा रहा
मेघवर्णी पीठ पर तूणीर में
मात्र बोझा ही रहा रघुवंश पर
समय पर तुमने
मुझे साधा नहीं।

हाय!
यह अपयश भरा जीवन निरर्थक
मैं कहो कैसे जीऊँगा?
काम कुछ आया नहीं
राम का शर बन गया पर
शौर्य का संस्पर्श तक पाया नहीं ।

तूणीर से तनते धनुष तक
नासिका से कर्ण तक की यात्रा देते मुझे
बेधता मैं लक्ष्य को
मित्र करते ईर्ष्या
और अपने अग्निवंशी हास्य से
मैं करता निरुत्तर।

किन्तु मेरे राम!
मैं निरर्थक ही रहा बोझा बना
तूणीर तरकश में पड़ा
एक बन्धक की तरह श्यामल,
तुम्हारी पीठ पर
क्या करूँ इस आग का?
लाभ क्या रण-राग का?
और सचमुच एक दिन
राह का काँट समझकर फेंक देंगे
अवधवासी।

मुझ अभागे की करुणा गाथा
पूज्य! मेरा कष्ट जानेंगे नहीं
राम का मैं बाण था
लोग मानेंगे नहीं।
कर सको तो
मात्र यह उपकार कर दो
साधकर चाहे मुझे आकाश में
छोड़ दो बिलकुल अकेला,
पात्र हूँ मैं भी तनिक सम्मान का,
काम आया कुछ तुम्हारे
यह मेरा सन्तोष होगा
दो मुझे सादर विदा
क्षण मुझे मत दो
हलाहल पान का
पात्र हूँ में भी
तनिक सम्मान का!
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली



















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