श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की आठवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की आठवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
सेनापति के नाम
अडियल घोड़े बदहवास हों
सारथि जिसके सूरदास हों
समर शेष है
ऐसे रथ से
मेरे रथी! उतर भी जाओ।
सारथि जिसके सूरदास हों
समर शेष है
ऐसे रथ से
मेरे रथी! उतर भी जाओ।
राज मार्ग के जय निनाद में, भूल गए अपनी पगडण्डी
सेनाएँ हो गईं प्रमादी, सेनापति हो गए शिखण्डी
इस सेना का अन्त निकट है-शेष समर अत्यन्त विकट है
रण ऋतु की रंगत पहिचानो, ओ रणव्रती! उतर भी जाओ
मेरे रथी! उतर भी जाओ।।
आलिगन में ऊष्मा हो तो, आँखों में रस बन्धन होते
द्रोपदी पल भर में बँट जाती, यदि सब कुन्ती नन्दन होते
सिर्फ उपद्रव जिनकी रति हो, दुर्गति ही जिनकी सद्गति हो
उनके रथ में राम नहीं है, लक्ष्मण जती! उतर भी जाओ
मेरे रथी! उतर भी जाओ।।
द्रोपदी पल भर में बँट जाती, यदि सब कुन्ती नन्दन होते
सिर्फ उपद्रव जिनकी रति हो, दुर्गति ही जिनकी सद्गति हो
उनके रथ में राम नहीं है, लक्ष्मण जती! उतर भी जाओ
मेरे रथी! उतर भी जाओ।।
जनादेश को अपमानित कर वचन भंग के दो दोषी हो
संसद जिनका रनिवासा हो सत्ता जिनकी बेहोशी हो
सेना नहीं गिरोह बचा है, खुद जिसमें संग्राम मचा है
उनकी शैली उनको शुभ हो, ओ जय शती! उतर भी जाओ
मेरे रथी! उतर भी जाओ
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‘ओ अमलतास’ की सातवीं कविता ‘फूल तुम्हारे, पात तुम्हारे’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की नौवीं कविता ‘यौवन के उत्पात वसन्ती’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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वाह! आनंद आ गया।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी टिप्पणी ने यह काम करते रहने के लिए हौसला बढाया।
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