‘भावी रक्षक देश के’ - चौथा बाल-गीत ‘प्रतिज्ञा’



                            प्रतिज्ञा

                जननी! तेरे सिंह-सुवन हम,
                बाल बहादुर बलिदानी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा
                करते हैं हम सेनानी।

                            - 1-

                तेरा ये हरियाला आँचल,
                सदा रखेंगे हरियाला।
                झुलसा नहीं सकेगी इसको,
                युद्धों की भीषण ज्वाला।

                हीरे-मोती जैसी फसलें,
                झूमेंगी लहरायेंगी।
                अमराई में कोयल रानी,
                मीठे गीत सुनायेगी।

                पनघट पर राधा की गागर,
                कान्हा सदा उठाएगा।
                सारा भारत एक बार फिर,
                वृन्दावन बन जायेगा।

                दूघ-दही की नदियाँ फिर से,
                हम गोपाल बहायेंगे।
                माखन मिसरी के गोवर्द्धन,
                लाखों नये बनायेंगे।

                सबके सुख में सुखी रहेंगे,
                सबकी पीर बँटायेंगे।
                विश्व शान्ति की माँग हमीं माँ!
                ऐटम से भरवायेंगे।

                छिड़केंगे सारी धरती पर,
                गंगा का पावन पानी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा,
                करते हैं हम सेनानी।

                            -2-

                सब धर्मों का मान करेंगे,
                सबको नमन हमारे हैं।
                सब देवालय पूज्य हमारे,
                हम सबके रखवारे हैं।

                सब ग्रन्थों का अर्चन करके,
                सबको शीश झुकायेंगे।
                मजहब के झूठे झगड़ों को,
                जननी! हम दफनायेंगे।

                सबसे बड़ा हमारा ईश्वर,
                प्यारा देश हमारा है।
                सौ-सौ स्वर्ग निछावर इस पर,
                अर्पित जनम हमारा है।

                एक जनम या कोटि जनम तक,
                इसकी खातिर लेंगे हम।
                एक इंच भी इस धरती का,
                नहीं किसी को देंगे हम।

                जो भी आँख उठेगी इस पर,
                या जो भी ललचायेगी।
                जननी! तेरी कसम उसी क्षण,
                तुरत फोड़ दी जायेगी।

                तेरे आगे उठ न सकेगा,
                कोई भी सिर अभिमानी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा, 
                करते हैं हम सेनानी।

                            -3-

                सारा भारत एक रखेंगे,
                भाषा से और भावों से।
                सदा-सदा संघर्ष करेंगे,
                शोषण और अभावों से।

                आजादी को शहरों से अब,
                गाँवों तक ले जायेंगे।
                प्रजातन्त्र का महामन्त्र हम,
                जन-जन को सिखलायेंगे।

                बलिदानों के गौरव कुल का,
                जननी! मान बढ़ायेंगे।
                तेरे अमर शहीदों का यश,
                पल-भर नहीं भुलायेंगे।

                तेरे लिये जियेंगे जननी।
                तेरे लिये मरेंगे हम।
                तेरे तने हुए मस्तक को,
                ऊँचा और करेंगे हम।

                चाँद सितारों तक हम तेरी,
                महाध्वजा फहरायेंगे।
                जब-जब तू माँगेगी तब-तब,
                हँसकर शीश चढ़ाएँगे।

                तिल भर नहीं झुकेगी तेरी,
                पुण्य पताका कल्याणी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा, 
                करते हैं हम सेनानी।

                            -4-

                यौवन को वापस लायेंगे,
                मेहनत के उजियारों में।
                नहीं देश को उलझायेंगे,
                हड़तालों और नारों में।

                नहीं कभी भी आयेंगे हम,
                बहकावे की बातों में।
                अनुशासन का अस्त्र रखेंगे,
                हरदम अपने हाथों में।

                राजनीति से धूर्तनीति को,
                देंगे देश निकाला हम।
                लोकनीति का सूर्य उगा कर,
                देंगे नया उजाला हम।

                नव समाज के निर्माता हम,
                श्रम का मान बढ़ायेंगे।
                तेरा सपना हँसे-गाते,
                सच करके दिखलायेंगे।

                तेरी आस पुरायेंगे माँ,
                तेरा कर्ज चुकायेंगे।
                तेरी माटी में मिल कर फिर,
                तेरा आँचल पायेंगे।

                तेरी कोख उजागर करके,
                कहलायेंगे सद्ज्ञानी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा,
                करते हैं हम सेनानी।

                            -5-

                चाहे जितनी आफत आयें,
                कभी नहीं घबरायेंगे।
                अमर तिरंगा लेकर जननी!
                आगे बढ़ते जायेंगे।

                कच्ची ऊमर, कच्ची काया,
                लेकिन धुन के सच्चे हैं।
                बाधाएँ क्या कर लेंगी माँ!
                हम भी तेरे बच्चे हैं।

                सागर जैसा मन पाया है,
                इस छोटी-सी काया में।
                मंजिल तक हम पहुँचेंगे ही,
                जननी! तेरी छाया में।

                सारा जग परिवार हमारा,
                सबसे भाईचारा है।
                जियो और जीने दो सबको,
                जीवन मन्त्र हमारा है।

                गीत अमन के गाते-गाते,
                तेरा यश फैलायेंगे।
                तेरे गौरव बन कर अपना,
                जीवन सफल बनायेंगे।

                मानवता को नयी जिन्दगी,
                देंगे हम औढर दानी।
                भुजा उठा कर आज प्रतिज्ञा,
                करते हैं हम सेनानी।

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भावी रक्षक देश के - तीसरा बाल-गीत ‘प्रेरणा’ यहाँ पढ़िए

भावी रक्षक देश के - पाँचवाँ/अन्तिम बाल-गीत ‘सहगान’ यहाँ पढ़िए


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भावी रक्षक देश के (कविता)
रचनाकार -
बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली 
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य -  एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972 
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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