इतना दरद न दे

श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की पैंतीसवीं कविता



इतना दरद न दे दीवानी

इतना दरद न दे.....


दिन भर देखा करूँ गगन में

रात-रात भर जलूँ अगन में

सुलग जाय साँसों का सागर

चाँद उठा दे ज्वार नयन में

                        इतना दरद न दे.....


दुनिया लगने लगी पराई

ठुकरादे बैरन तनहाई

लम्बी लगने लगे उमरिया

यौवन के पग फटे बिवाई

                        इतना दरद न दे.....

                        अरमानों का दम घुट जाए

परिचय के खण्डहर लुट जायें

सपने मर जायें बचपन में

आशा की अरथी उठ जाये

                        इतना दरद न दे.....


                        रूठ जाय मन का पनिहारा

                        टूट जाय तन का इकतारा

                        संयम आँगन में आ जाये

                        आँसू बन जायें आवारा

                        इतना दरद न दे.....


                        बरस जाय बिरहा का बादल

                        भीग जाय अन्तर का आँचल

                        बह जाये पीड़ा की पुरवा

                        घुल जाये करुणा का काजल

                        इतना दरद न दे.....


                        मुरझा जायें सब मुसकाने

                        तू भी पीर नहीं पहचाने

                        करें ठिठोली सब बाराती

                        देने लगे कफन तक ताने

                        इतना दरद न दे.....

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963













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