दीप बेला


श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की दूसरी कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।











दीप बेला

और फिर यह दीप बेला
और फिर यह दीप माला
ज्योति की अँगनाइयों में
झिलमिलाता यह उजाला
लग रहा शायद सभी कुछ
ठीक है और स्वस्थ है
किन्तु मेरे बन्धु!
चिन्तक मात्र चिन्ताग्रस्त है।
कालिमा अब भी बराबर
कर रही षड़यन्त्र है
राम जाने किस खुशी में
मस्त सारा तन्त्र है।
जो अमावस के जुलूस में
कल तलक थे मुब्तिला
रोशनी को गालियाँ देना था
जिनका सिलसिला
आज वे सब घुस गये हैं
इस जुलूस में शान से
रोशनी को ये मिटायेंगे
यकीनन जान से।
बीस रुपहले कमल जो
कल खिले हैं ताल में
ये उन्हें ही ले रहे हैं
आज अपने जाल में
तुम मूक दर्शक ही रहे तो
क्या कहेंगी पीढ़ियाँ
पाँव इनके तोड़ दो
तुम खींच लो सब सीढ़ियाँ।
ज्योति के उद्धार का
संकल्प अब तुम ही करो
ज्योति पुत्रों!
वर्ण संकर विषधरों से
मत डरो।
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‘वंशज का वक्तव्य’ की पहली कविता ‘अब’ यहाँ पढ़िए


‘गौरव गीत’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।  

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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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