अभिलाषा





 श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
‘गौरव गीत’ का पहला गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 



अभिलाषा

हे भगवान!
हम वासी इस भारत भू के
सदा माँगते यह वरदान
हे भगवान!

गगन मिले तो आजादी का
वतन मिले तो श्री गाँधी का
कफन मिले तो बस खादी का
और नहीं कुछ हमें चाहिये
विनय हमारी लेना मान
हे भगवान!

हमें स्वर्ग की चाह नहीं है
और नरक से डाह नहीं है
सुख-दुःख की परवाह नहीं है
माता के हित जीवन दे दें
पूरा करना यह अरमान
हे भगवान!

नहीं मृत्यु से कभी डरें
जन सेवा में जियें, मरें
नाम हिन्द का अमर करें
भारत माँ को हम युवकों पर
सदा रहे सच्चा अभिमान
हे भगवान!
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‘गौरव गीत’ की भूमिका, कवि का आत्म-कथ्य, सम्मतियाँ, सन्देश यहाँ पढ़िए

‘गौरव गीत’ का दूसरा गीत ‘सेवादल के सबल सिपाही’ यहाँ पढ़िए


मालवी कविता संग्रह  ‘चटक म्हारा चम्पा’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।  

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‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ
गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म.
प्र.) 

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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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