05 अगस्त को हमारे बड़े बेटे चि. वल्कल का तैंतीसवाँ जन्म दिनांक था। सुबह-सुबह दोनों (पति-पत्नी) उसे आशीर्वाद देकर चाय पी रहे थे कि बिना किसी सन्दर्भ/प्रसंग के मेरी उत्तमार्द्ध ने कहा - ‘नव रात्रि में, ऋषिकेश में, गीता भवन में रामायणजी का पाठ होगा। मेरी इच्छा है कि अपन दोनों इसमें चलें।’ मैंने तत्क्षण हामी भर दी। वे चकित हो बोलीं - ‘अरे! आपने तो एक सेकण्ड में हाँ कर दी! सच्ची में आप चलेंगे?’ मैंने कहा - ‘आपने इच्छा जताई है तो जरूर चलेंगे। लेकिन मुझे आपसे एक छूट चाहिए।’ तब तक उनका अचरज दूर हो चुका था। बोलीं - ‘जानती हूँ कि आपको कौन सी छूट चाहिए। चिन्ता मत कीजिए। आपका जी करे तो पाठ में बैठिएगा और जी न करे तो मत बैठिएगा।’ अब मेरे चकित होने की बारी थी। एक-दूसरे को समझने के मामले में वे मुझसे कोसों आगें निकलीं। मैं झेंप गया। इसी ‘झेंपित दशा’ में, उनकी इस उदारता के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
चाय पीते ही हम दोनों केलेण्डर और रेल्वे टाइम टेबल लेकर बैठ गए। रतलाम से सीधे हरिद्वार पहुँचानेवाली दैनिक रेल, देहरादून एक्सप्रेस लगभग सत्ताईस घण्टे लेती नजर आ रही थी। इन्दौर/उज्जैन से मिलनेवाली ट्रेनों की भी यही ‘गति’ थी। नेट पर तलाश किया तो एक ट्रेन, बलसाड़-हरिद्वार मिल गई जो अधिकतम सोलह घण्टों में रतलाम से हरिद्वार पहुँचा रही थी। किन्तु यह ट्रेन सप्ताह में एक ही दिन, मंगलवार को चलती है और इससे जाने पर हमें कोई सप्ताह भर हरिद्वार में अतिरिक्त रुकना पड़ रहा था। रामायण पाठ सोलह को शुरु होना था और इस ट्रेन से हमें दस अक्टूबर को ही पहुँचना होगा। याने, ग्यारह घण्टों की यात्रा से बचने के लिए पूरे सात दिन बिना बात-बिना काम के हरिद्वार में रुकना! बहुत बड़ी कीमत लगी हमें। लेकिन सोचा, हरिद्वार के आसपास थोड़ा घूम लेंगे। वापसी इसी ट्रेन से कर लेंगे - चौबीस अक्टूबर को। दशहरे के दिन।
तय करके वल्कल को फिर फोन लगाया। रेल का नम्बर, नाम और तारीखें बता कर, थ्री टायर वातानुकूलित स्लीपर में आरक्षण कराने को कहा। वह हमसे एक कदम आगे निकला। उसने टू टायर वातानुकूलित स्लीपर में आरक्षण ले लिया। (टोकने पर उसने कहा - ‘आप होंगे गरीब बाप के बेटे। मैं, लखपति बीमा एजेण्ट और कमाऊ अध्यापक माँ का बेटा हूँ। फिर, मैं भी तो कमा रहा हूँ!’ है कोई जवाब ऐसी बातों का?) दोनों तरफ के आरक्षण ‘वेटिंग’ में मिले। जाने के लिए प्रतीक्षा सूची 25-26 और आने के लिए प्रतीक्षा सूची 1-2। टिकिट उसने नेट से लिए थे और नेट से ही मुझे भेज दिए। मैंने दोनों टिकिट छाप कर अपनी जेब में रख लिए।
शाम को सुभाष भाई जैन से मुलाकात हुई। वे मेरे ‘संरक्षक’ की भूमिका निभाते हैं। रेल्वे में हेण्डलिंग काण्ट्रेक्टर हैं सो रेल अधिकारियों से ‘ठीक-ठीक’ सम्पर्क है। मैंने अपनी यात्रा का जिक्र किया। उन्होंने आरक्षण के बारे में पूछा। मैंने टिकिट बताए। देख कर उनका माथा ठनका। किसी को फोन लगा कर पूछा - ‘वेटिंग में ये पीक्यूडब्ल्यूएल क्या होता है?’ उधर से जो जवाब मिला उसे सुनकर मुझसे बोले - ‘ये टिकिट फौरन केंसल करवाइए और रतलाम/इन्दौर/उज्जैन से चलनेवाली किसी ट्रेन में रिजर्वेशन लीजिए। ये न तो कन्फर्म होंगे और न ही इन पर वीआईपी अलॉटमेण्ट हो सकेगा।’ वहीं बैठे-बैठे एक बार फिर रेल्वे टाइम टेबल देखे, तारीखों के बारे में उत्तमार्द्ध से बात की। मालूम हुआ कि रतलाम से मिलनेवाली देहरादून एक्सप्रेस में रिजर्वेशन मिलना तो दूर, हमारी मनपसन्द तारीखों में वीआईपी अलॉटमेण्ट भी नहीं मिल सकेगा। सुनकर, फौरन ही वल्कल को फोन कर, रतलाम-हरिद्वारवाले रिजर्वेशन निरस्त कराने के लिए कहा और मन मारकर, इन्दौर से चलनेवाली इन्दौर-देहरादून एक्सप्रेस के टिकिट लिए। मिले तो ये भी वेटिंग में ही किन्तु सुभाष भाई ने कहा - ‘बेफिकर रहिए। गाड़ी इन्दौर से ही बनती है। आपको जगह मिल जाएगी।’
परिवर्तित कार्यक्रमानुसार अब हमारी यात्रा 14 अक्टूबर से शुरु होनी थी। उसी शाम को हमें उज्जैन से रेल में बैठना था।
अब हम 14 अक्टूबर की प्रतीक्षा और उसके समानान्तर, मन ही मन, यात्रा की तैयारियाँ कर रहे थे।
रेल याता की तैयारियां भी परीक्षा ले लेता है.
ReplyDeleteअब आगे यात्रा वृतांत पढने को मिलेगा ..
ReplyDeleteआपकी यात्रा सुखद हुयी है, इसकी आशा करता हूँ।
ReplyDeleteआपका अनुमान सौ टका सही है। सबसे अन्तिम बात आपने सबसे पहले सूचित कर दी। यात्रा (जाने की भी और आने की भी)सचमुच में सुखद रही।
Deleteअब आजके तारीख में यात्रा के लिए शुभ कामना देना असंगत ही होगा. साथ ही यात्रा सुखद रही होगी यह भी कहना अनावश्यक लग रहा है क्योंकि ऊपर की टिपण्णी से यह ज्ञात हो चला है. कृपया ज्ञानवर्धन करें कि पीक्यूडब्ल्यूएल का क्या चक्कर है.
ReplyDeleteमुझे भी पता नहीं था। यह तो विवेक रस्तोगीजी ने ही बताया। उनकी टिप्पणी, इस टिप्पणी के ठीक नीचे ही है।
Deleteअच्छा हुआ कि आप पूल कोटे के चक्कर में नहीं रहे, नहीं तो इतनी वेटिंग कभी भी कन्फ़र्म नहीं होती है।
ReplyDeleteआपस की समझ परिवार में विकसित होनी ही चाहिये ।
'पीक्यूडब्ल्यूएल' का अर्थ आपसे ही मालूम हो पाया। धन्यवाद।
DeleteAapke saath hi hum bhi yatra me jaa rahe hai.. Train me hi intazaar kar rahe hai.. agale vrataant ka intazaar hai
ReplyDeleteइस यात्रा के किस्से तो अपन पढ़ चुके हैं।
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