श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की छठवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की छठवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
समर्पित किया गया है।
क्यों तुमने यह बिरवा सींचा
क्यों यह अर्ध्य दिया अभिमन्त्रित
क्यों इतना अनुराग उलीचा
क्यों तुमने यह बिरवा सींचा
गगन टेक कर किरन लुकाटी
ढूँढ रहा है सुरभित माटी
अम्बर को तुम अपने तप से
क्यों ले आये इतना नीचा
क्यों तुमने यह बिरवा सींचा
प्राण-प्राण मनवन्तर जुड़ती
पागल गन्ध निरन्तर उड़ती
छन्द-छन्द को बना दिया है
तुमने कैसा गन्ध-गलीचा
क्यों तुमने यह बिरवा सींचा
आज ऋणी है स्पन्दन-स्पन्दन
यह कैसा पानी का बन्धन
अँकवारी भर जल ने जल को
क्यों कर यूँ बाँहों में भींचा
क्यों तुमने यह बिरवा सींचा
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‘ओ अमलतास’ की पाँचवीं कविता ‘आज तो करुणा करो’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की सातवीं कविता ‘फूल तुम्हारे, पात तुम्हारे’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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