श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का अठारहवाँ गीत
‘ललकार’ का अठारहवाँ गीत
दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है।
स्याही का विश्वास
जब तक मेरे हाथों में है, नील कण्ठनी लेखनी
दर्द तुम्हारा पीने से, इन्कार करूँ तो कहना
मुझे कलम क्या दी दाता ने, आग थमा दी हाथों में
अपने सपने आप जला कर, बैठा रहूँ अनाथों में
यूँ तो मेरे सपने जग में, मृत्युंजय कहलाते हैं
यूँ तो अम्बर के पनिहारे, मुझको भी ललचाते हैं
(पर) जब तक ये बारूद बिछा है, केश खुले हैं वसुधा के
अगर कहीं मैं अम्बर का, सिंगार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
स्याही की दो बूँद मिलीं क्या, खुद से हुआ पराया हूँ
अमृृत बाँट रहा हूँ अविरल, विषघट घर ले आया हूँ
ये मेरा उपकार नहीं है, तिल भर भी एहसान नहीं
इसके बिना अधूरा हूँ मैं, लगते मुझ में प्राण नहीं
(पर), भूले से भी टूट गई, यदि ये निर्जल एकादशी
अगर कहीं मैं जीने का कुविचार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
अमृृत बाँट रहा हूँ अविरल, विषघट घर ले आया हूँ
ये मेरा उपकार नहीं है, तिल भर भी एहसान नहीं
इसके बिना अधूरा हूँ मैं, लगते मुझ में प्राण नहीं
(पर), भूले से भी टूट गई, यदि ये निर्जल एकादशी
अगर कहीं मैं जीने का कुविचार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
ये पगडण्डी, ये चौराहे, ये गलियाँ, ये राजमहल
ये मधुुवन, ये झर-झर झरने, ये कजरारे ताजमहल
कई अजानी उर्वशियों का, रोज सन्देसा लाते हैं
या तो गुप-चुप कहते हैं या, सिरहाने रख जाते हैं
(पर) जब तक आँख तुम्हारी है कुछ, अकुलाई आँसू भरी
अगर कहीं मैं काजल से अभिसार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
वे जो दो आँसू दिखते हैं, लगते जग से न्यारे हैं
अजर-अमर हैं, अपराजित हैं, प्राणों से भी प्यारे हैं
जैसे बहती वेद ऋचाएँ, ठिठकी गौएँ श्याम की
जिनके मुँह पर मुहर लगी है, केवल मेरे नाम की
(पर) जब तक लछमन रेख बनी है, और मिलन मजबूर है
अगर कहीं मैं प्रियतम की, मनुहार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
लाओ अपना दर्द पिलाओ, समझो मेरी प्यास को
गया हुआ मत कभी समझना, स्याही के विश्वास को
आँसू का अनमोल खजाना, दे दो मेरी झोली में
मस्त रहो अपनी मेंहदी में, पनघट औ’ राँगोली में
जब तक दर्द तुम्हारा मेरी नस-नस में मौजूद है
अगर कहीं मैं गीतों का, व्यापार करूँ तो कहना
जब तक मेरे हाथों में है.....
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इस संग्रह के, अन्यत्र प्रकाशित गीतों की लिंक -
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गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।
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