गीतकार वही जो व्यवस्था का विरोध करे, समय से समझौता नहीं करे, कलम को धोखा न दे



(दादा के साक्षात्कारों पर मैंने कभी ध्यान नहीं दिया। किन्तु अचानक ही ऐसा हुआ कि दादा के, एक के बाद एक, पाँच साक्षात्कार मेरे सामने आ गए। तब मैंने तय किया कि इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इन साक्षात्कारों को प्रकाशन हेतु तैयार करते-करते मुझे दो साक्षात्कार और मिल गए। अब, जब साक्षात्कार प्रकाशन का यह क्रम शुरु कर रहा हूँ तब कुल सात साक्षात्कार मेरे सामने हैं। इन साक्षात्कारों को सार्वजनिक करने का मेरा एक ही उद्देश्य है - दादा से जुड़ी अधिकाधिक सामग्री ‘नेट’ के जरिये सार्वजनिक हो ताकि, पहली बात तो यह कि दादा के बारे में जानने के जिज्ञासुओं को अधिकाधिक सामग्री एक स्थान पर मिल जाए और दूसरी बात यह कि ‘नेट’ पर उपलब्धता इन्हें स्थायित्व प्रदान करेगी। इन साक्षात्कारों की साहित्यिक उपयोगिता, उपादेयता मेरे विचार में बिलकुल नहीं रही है। वह, आप, पाठक ही तय कीजिएगा। - विष्णु बैरागी।)

(मुझे यह साक्षात्कार श्री लालबहादुर श्रीवास्तव से मिला है। यह साक्षात्कार सम्भवतः सन् 2014 में लिया गया था। इसमें मुझे, फिल्म ‘गोगोला’ और ‘भादवामाता’ के बारे में कुछ तथ्यात्मक विसंगतियाँ नजर आईं। इस साक्षात्कार के समय दादा अपने जीवन के 86वें वर्ष प्रवेश करनेवाले थे। तब ‘गोगोला’ को बने 50 वर्ष और ‘भादवामाता’ को बने 43 वर्ष बीत चुके थे। सम्भवतः इस अन्तराल के प्रभाव से ही ये विसंगतियाँ आ गई होंगी। पाठकों तक सही जानकारियाँ पहुँचें, इस सदाशयता और सद्भावना से मैंने वांछित संशोधन किए हैं। किन्तु ऐसा करते हुए यह पूरा ध्यान रखा है और पूरी कोशिश की है कि पाठक का रस-भंग बिलकुल न हो। इन सशोधनों के लिए मैंने लाल बहादुरजी से पूर्वानुमति नहीं ली है। विश्वास है, वे मेरी नीयत पर भरोसा करेंगे और मुझे क्षमा कर देंगे। कुछ और प्रश्नों के साथ यह साक्षात्कार, उज्जैन से प्रकाशित हो रहे ‘समावर्तन’ के मई 2015 अंक में छपा था। श्री लालबहादुर श्रीवास्तव ने यह साक्षात्‍कार आमने-सामने लिया गया था। -- विष्णु बैरागी)


आपने फिल्मों के लिए पहला गीत कब और किस फिल्म के लिए लिखा?

मेरी पहली फिल्म का नाम है ‘गोगोला’। सन्-सम्वत् तो मुझे याद नहीं। (यह फिल्म सन् 1966 में प्रदर्शित हुई थी। - विष्णु बैरागी) फिल्म में चार गीत थे और चारों मैंनें ही लिखे थे। तबस्सुम इसकी हीरोईन थी। कभी बेबी तबस्सुम के नाम से प्रसिद्ध थी। नागपुर के श्री जे. प्रभाकर इसके निर्माता तथा बालाघाट के श्री मुकुन्द त्रिवेदी इस फिल्म के निर्देशक थे। इस फिल्म की एक गजल ‘जरा कह दो फिजाओं से हमें इतना सताये ना’ (गायक-तलत महमूद और मुबारक बेगम) आज भी खूब प्रसारित होती है और लोकप्रिय है। मुकुन्दभाई इससे पहले अपनी प्रसिद्ध फिल्म ‘नर्तकी’ बना चुके थे।

आपका एक गीत फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ का ‘तू चन्दा मैं चाँदनी तू तरुवर मैं शाख’ उस जमाने में बडा चर्चित हुआ था आज भी है। जब आपको मालूम पड़ा कि इस गीत को स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर गाने वाली है तब आपको कैसा महसूस हुआ?

मुझे यह सूचना लताजी ने ही फोन पर दी थी। मुझे पता नही था कि यह गीत लता दीदी गाने वाली हैं। इस गीत की रिकार्डिंग भी मैंने नहीं देखी। संगीतकार जयदेवजी यह गीत लिखवाने मुम्बई (तब बम्बई) से भोपाल आये थे। मैं उस समय मध्यप्रदेश के सूचना और प्रकाशन विभाग का राज्य मन्त्री था। भोपाल के मेरे सरकारी आवास, पुतलीघर बंगले में रात को 10 से 12 बजे के बीच मैंने यह गीत लिख दिया था। जयदेवजी मेरे यहाँ ही ठहरे थे। दिन भर मैंने सचिवालय (वल्लभ भवन) में राजकाज किया और दफ्तर से लौटकर यह गीत लिखा। यह सन् 1970-71 की बात है।

एक दिन बडी सुबह जब हम दोनों पति-पत्नी सवेरे की चाय पी रहे थे तब लताजी ने फोन पर मुझे बताया कि उन्होंने मेरा लिखा गीत गाया है। मैं रोमांच और सुख से हर्षित होकर मारे खुशी से खड़ा हो गया था। उन दिनों मोबाईल नहीं था। मिनिस्ट्री-विनिस्ट्री धरी रह गई थी। फोन पहले मेरी पत्नी श्रीमती सुशील चन्द्रिका बैरागी ने उठाया। उधर से लता जी ने कहा ‘बम्बई से मैं लता बोल रही हूँ। बैरागीजी से बात करवाईये।’ सुशील ने नारी सुलभ ईर्ष्या के साथ फोन का चोंगा मुझे थमाते हुए कहा ‘लो! बम्बई से आपकी कोई लता बोल रही है। बात कर लो।’ जब लताजी ने अपना पूरा नाम ‘लता मंगेशकर’ बताया तो मैं रोमांचित होकर खड़ा हो गया। हमारी चाय हजार गुना मीठी हो गई। सब कुछ कल्पनातीत था। जयदेवजी इस गीत के लिए मीटर लाये थे ‘कठे गया म्हारा ऊँटड़ा’। इसी मीटर पर है ‘तू चन्दा मैं चाँदनी’। ‘रेशमा और शेरा’ फिल्म से जुडे हम तीन लोग लोकसभा सदस्य बने। श्री सुनीलदत्त, श्री अमिताभ बच्चन और मैं स्वयं बालकवि बैरागी। फिर दो लोग राज्यसभा सदस्य बने, मैं और लता दीदी। इस गीत के कई संस्मरण है।

क्या लता जी से कभी आपकी भेंट हुई है?

लताजी से मैं सन् 1955 से ही परिचित हूँ। जयदेवजी ने ही परिचय कराया और पिछली आधी सदी में मैं उनसे खूब परिचित हूँ। समय देवता ने मुझे और उन्हें राज्य सभा में साथ-साथ रखा।

आपने बच्चों की फिल्मों के गीत भी लिखे हैं। किन-किन बाल फिल्मों में आपने गीत लिखे हैं?

स्व. श्री रवि नगाईच की फिल्म ‘रानी और लाल परी’ में एक गीत को छोड़कर बाकी सारे गीत मेरे ही लिखे हुए है। श्री वसन्त देसाई इसके संगीत निर्देशक थे।

मालवी भाषा को आपने अपने गीतों से नई पहचान दी है, क्या मालवी भाषा में आपने किसी फिल्म में गीत/पटकथा लिखी है?

हाँ। मालवी की पहली फिल्म ‘भादवामाता’ मेरी ही प्रेरणा से सन् 1973 में बनी। नागपुरवाले श्री जे. प्रभाकर इसके निर्माता तथा बालाघाटवाले श्री मुकुन्द त्रिवेदी इसके निर्देशक थे। इसकी पटकथा श्री अर्जुन जोशी की थी। गीत सभी मेरे थे। संगीत ‘बाल-मुकुन्द’ के नाम से मैंने और मुकुन्द भाई त्रिवेदी ने दिया था। बालकवि से ‘बाल’ और मुकुन्द से ‘मुकुन्द’ लेकर ‘बाल-मुकुन्द’ नाम बनाया।

जब कोई गीत हिट होता है तो उसका सारा श्रेय गीतकार नही बल्कि संगीतकार ले जाता है, ऐसा क्यों?

प्रत्येक उद्योग की अपनी-अपनी शैली है। मेरे लिखे 70 गीत जयदेवजी की डायरी में गुमनाम चले गये। यदि संगीतबद्ध हो जाते तो दस पाँच गीत चल निकलते। शब्द अपनी जगह अमर हैं पर संगीत उन शब्दों का अजर-अमर बना देता है।

प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा का कोई मुद्दा नही है। ईर्ष्या का तो सवाल ही नही है। श्रेय जिसके भाग्य में होता है उसी को मिल जाता है।

आज के फिल्म गीतकार लयबद्ध न लिखते हुए तुकबन्दी पर ज्यादा आश्रित हैं। यह समय की माँग है या गीतकार जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं?

यह समय की माँग है। समय तत्व की अवहेलना कोई नही करता।

आज के फिल्मी गीतकार को एक गीत के लिए 4 लाख तक पारिश्रमिक मिल जाता है। आपके समय में गीतकार को तुलनात्मक रूप से क्या इतना ही पारिश्रमिक मिलता था?

पारिश्रमिक की बात मत पूछिये। ‘तू चन्दा मैं चाँदनी’ गीत को लिखने का पारिश्रमिक मुझे एक कलाई घड़ी मिला था। उस जमाने में बमुश्किल चार-पाँच सौ रुपये की थी यह घड़ी। पर सुनील दत्त-नरगिस परिवार का अगाध स्नेह, जयदेवजी और लताजी का आशीर्वाद पारिश्रमिक से बडी सम्पदा है।

आपके फिल्मी गीतों को किन-किन प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज दी है?

लताजी, आशाजी, मीनाजी, तलतजी, महेन्द्र कपूर, मन्ना डे, येसुदास जैसे दस बारह नाम स्मृति में कौंधते हैं।

आजादी के समय आपने कई क्रान्तिकारी गीत लिखे। उन गीतों का क्या राष्ट्रीय फिल्मों में उपयोग हुआ है?

हाँ, एक फिल्म ‘आजादी पच्चीस बरस की’ नाम से डाक्यूमेण्टरी बनी थी।

आपकी पसन्द के गायक कौन-कौन रहे हैं जिनके गीत आप आज भी गुनगुनाते हैं?

पसन्द-नापसन्द का कोई प्रश्न नही है। जो भी सुर में है वह सभी को पसन्द आ ही जाता है।

आज के गीत पुराने गीतों की तुलना में इतने कर्णप्रिय नही हैं जो दिल को छा जाएँ। क्या इसके पीछे प्रमुख कारण व्यावसायिकता है या कोई और?

आज के गीतों में माधुर्य नही है। सारा चक्कर और बखेड़ा व्यावसायिकता एवं व्यापार का है।

क्या गीतकार के लिए संगीत की स्वर लहरियाँ जानना जरूरी है?

यदि गीतकार संगीत का ज्ञान भी रखता हो तो ‘सोने पर सुहागा’ हो जाता है। जरूरी कुछ भी नही है।

आपके दिल के करीब रहने वाला कौन सा गीतकार है? जिसके गीतों ने आपके जीवन दर्शन को प्रभावित किया है?

प्रदीपजी और नरेन्द्रजी शर्मा मुझे हमेशा प्रेरित करते रहे।
प्रसिद्ध गीतकार प्रदीप जी का सान्निध्य क्या आपको मिला है?
हाँ। मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक हूँ जिन्हें प्रदीपजी का स्नेह सान्निध्य मिला। मैं इस सौभाग्य के लिए स्व. श्री बद्री प्रसाद जी जोशी का उपकार मानता हूँ।

आपने अपने गीतों से नेहरूजी/इन्दिराजी को भी प्रभावित किया था, क्या यह सच है?

नेहरूजी और इन्दिराजी मुझसे प्रभावित थे या नहीं इस बात की मुझे जानकारी नहीं है किन्तु यह मेरा प्रबल सौभाग्य है कि दोनों मुझे मेरे नाम से जानते थे और समय-समय पर मुझसे छोटा-बडा काम लेते थे। यह उनका बड़प्पन और मेरे माता पिता के पुण्य के कारण हो सका। सरस्वती माता की कृपा तो है ही। मित्रों की शुभकामनाओं का प्रताप भी है।

एक गीतकार का समाज के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए?

समाज के मनोभावों को वाणी दे। व्यवस्था का विरोध करे। समय से समझौता नहीं करे। कलम को धोखा नहीं दे।

क्या आज भी आप फिल्मी/गैर फिल्मी गीतों के सृजन में सृजनरत हैं?

कोई मित्र लिखवाएगा तो लिख दूँगा। गीत बस गीत होता है। उसे फिल्मी और गैर फिल्मी में मत बाँटिये। क्या ‘वन्देमातरम्’ किसी फिल्म के लिए लिखा गया था? क्या ‘ज्योति कलश छलके’ गीत को आप फिल्मी कहकर अलग फेंक देंगे? ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ तो किसी भी फिल्म के लिए नही लिखा गया था।
------

(श्री लालबहादुर श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय मन्दसौर में रहते हैं। जब यह साक्षात्कार पोस्ट हो रहा है तब वे जनपद पंचायत मन्दसौर में सहायक विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनका पता - ‘शब्द शिल्प’, एलआईजी ए-45, जनता कॉलोनी, मन्दसौर - 458004, मध्य प्रदेश तथा मोबाइल नम्बर 94250 33960 है।)

अगला कड़ी में भोपालवाले (अब स्वर्गीय) डॉक्टर राजेन्द्र जोशी द्वारा लिया गया साक्षात्कार। 


श्री बालकवि बैरागी के अन्‍य साक्षात्‍कार







 

श्री अमन अक्षर से बालकवि बैरागी की बातचीत यहाँ पढ़िए।


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.