दादा श्री बालकवि बैरागी को याद करते हुए रमेश भाई (चोपड़ा) ने एक बात में दो बातें कह दीं। बात तो कही थी उन्होंने दादा के स्वभाव की लेकिन उन्हें पता ही नहीं चला कि वे, लायंस और रोटरी क्लबों के समारोहों की लम्बी, बोझिल, उबाऊ, नीरसता की दूसरी बात भी बता गए।
गए पाँच दिनों में रमेश भाई से चार दिन लगातार मुलाकातें हुईंं। उनसे इतनी लगातार मुलाकातें तो तब भी नहीं हुईं जब वे रतलाम में रहते थे। गए कुछ बरसों से वे ‘रतलामी’ से ‘इन्दौरी’ हो गए हैं। लेकिन उनका एक पाँव अब भी रतलाम में और दूसरा इन्दौर में रहता है। रतलाम में थे तब भी और अब इन्दौर में हैं तब भी वे रोटरी में निरन्तर सक्रिय बने हुए हैं। वर्ष 2017-18 में वे झोन 19 के सहायक मण्डलाध्यक्ष थे। रोटरी मण्डल 3040 के मण्डलाध्यक्ष ने अभी-अभी ही उन्हें प्रशंसा-पत्र से सम्मानित किया है।
जून के अन्तिम सप्ताह मे मैं इन्दौर आया तो था अपने कानों की जाँच कराने। लेकिन कानवाले डॉक्टर सा’ब ने दाँतों का ईलाज तुरन्त कराने की सलाह दे दी। मुझे पहले ही क्षण रमेश भाई याद आ गए। उनके बेटा-बहू अर्पित चोपड़ा और रुचि चोपड़ा इन्दौर की नई पीढ़ी के अग्रणी दन्त चिकित्सक हैं। यशवन्त निवास मार्ग पर, भारतीय स्टेट बैंक के सामने, रॉयल डायमण्ड बहुमंजिला भवन में, ‘आइकॉनिक डेण्टल केयर’ के नाम से इनका क्लिनिक है। अर्पित और रुचि से मेरी मुलाकात नहीं। सो रमेश भाई से मिला। बोले - ‘मरीज भी घर का और डॉक्टर भी घर का।’ और अर्पित-रुचि ने मेरी राम कहानी सुन कर ईलाज की तारीखें तय कर दीं। तेरह जुलाई से दोनों पति-पत्नी अपने चिकित्सकीय कौशल, परिवार-भाव की चिन्ता और संस्कारशील विनम्रता से मेरा ईलाज कर रहे हैं। रमेश भाई का दफ्तर और दोनों डॉक्टरों का क्लिनिक एक ही जगह है - ‘एक में दो’ की तरह। डाक्टरों के दिए वक्त से पहले पहुँचता हूँ और रमेश भाई से गपियाता हूँ। ईलाज लम्बा है। प्रति दिन चार से पाँच घण्टे लगते हैं। रुचि और अर्पित बीच में छुट्टी देते हैं तो वह वक्त भी रमेश भाई के साथ ही बीतता है।
बातों ही बातों में आज दादा की बात निकल आई। रोटरी के एक आयोजन में रमेश भाई ने उन्हें मुख्य अतिथि बनाकर बुलाया था। दादा से उनका सीधा सम्पर्क नहीं था। किसी माध्यम से वे उन तक पहुँचे थे। निश्चय ही माध्यम ऐसा रहा होगा जिसकी बात मानना दादा के लिए अपरिहार्य रहा होगा। रमेश भाई ने कहा - ‘दादा आ गए और खुश भी थे। लेकिन मुझे साफ लगा कि वे रोटरी-लायंस के निमन्त्रणों को टालने की कोशिश में रहते थे।’ यह बात मेरे लिए नई नहीं थी। पाँच-सात बार तो मैंने भी उन्हें इन सस्थाओं के आयोजनों में जबरन धकेला था। लेकिन मैं रमेश भाई से सुनना चाहता था - दादा ने ऐसा क्या कह दिया, कर दिया कि रमेश भाई को ऐसा लगा?
रमेश भाई ने कहा - “चूँकि मेजबान की भूमिका में मैं ही था सो रतलाम में उनकी देखभाल मेरे जिम्मे थी। रतलाम के रोटरी सदस्यों में से मुझे ही उनके साथ सर्वाधिक समय साथ रहने का मौका मिला।
“यह आयोजन 25 दिसम्बर 1999 को हुआ था। उन्होंने पूछा - ‘कार्यक्रम क्या है?’ मेरे पास आयोजन का पूरा ब्यौरा लिखित में था। वह उन्हें दे दिया। वे पढ़ रहे थे। मैं भी बीच-बीच में बताता जा रहा था। उनकी आँखें कागज पर और कान मेरी बातों पर थे। ध्यान से देखने-सुनने के बाद उन्होेंने कागज टेबल पर रखा और मुस्कुराते हुए मुझसे बोले - ‘यार चोपड़ाजी! बाकी तो सब ठीक है। लेकिन आपके रोटरी का अनुशासन बड़ा विचित्र है। आपके यहाँ सीधी बात तो होती ही नहीं। ‘भूतपूर्व-अभूतपूर्व’ बोले बिना आपका काम नहीं चलता। आप लोग तो कार्यक्रम संचालक के निर्देश के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। और तो और, बेचारे श्रोता भी तालियाँ तब ही बजा पाते हैं जब संचालक कहता है - ‘मुख्य अतिथि महोदय का भाषण समाप्त हो चुका है। अब आप तालियाँ बजा सकते हैं।’ कह कर दादा जोर से हँस दिए। मेरी भी हँसी चल गई।
“लेकिन दादा का यह मूड केवल बन्द कमरे तक ही रहा। अपने भाषण में इस विषय में कुछ भी नहीं कहा। हमारे आयोजन में वे बोले और खूब, खुलकर बोले। दादा ने हमारा आयोजन शानदार तो बनाया ही, जानदार भी बना दिया।”
रोटरी क्लब रतलाम के समारोह मे हुँचते हुए दादा। चित्र में सबसे बाँयी ओर रमेश भाई चोपड़ा
बात करते-करते रमेश भाई अपने एलबम के पन्ने भी पलट रहे थे। एक पन्ने पर रुककर एक चित्र निकाल कर मुझे बताया। यही चित्र मैंने ऊपर दिया है।
दादा को यान्त्रिकता और निर्जीव औपचारिकता पसन्द नहीं थी। वे सहजता और अनौपचारिकता में ही जी पाते थे। लेकिन अपने आत्मीय, प्रियजनों के प्रेम के वशीभूत हो, अपनी मानसिकता के प्रतिकूल आयोजनों में भी पहुँचते थे।
रमेश भाई का परिवार। बाँये से डॉ. अर्पित चोपड़ा, रमेश भाई, अपनी बिटिया
आध्या को गोद में लिए डॉक्टर रुचि चोपड़ा और श्रीमती ऊषा रमेश चोपड़ा
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 100वां जन्म दिवस - नेल्सन मंडेला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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