नीरजजी के निधन के बाद उन पर लोगों ने अपेक्षानुरूप ही
बड़ी संख्या में अपने-अपने मन्तव्य और संस्मरण प्रकट किए। नीरजजी इससे कहीं अधिक के अधिकारी थे। सन्तोष की बात यही है कि उन पर लिखना थमा नहीं है। यह क्रम बना रहेगा और नीरजजी के व्यक्तित्व के अनूठे पक्ष हमारे सामने आते रहेंगे। कुछ इस तरह कि हम हर बार एक नए, अनूठे नीरज से मिलने का सुख अनुभव करेंगे।
लेकिन, जितना कुछ मैं पढ़ पाया उसमें मुझे उनके एक पक्ष का जिक्र कहीं देखने-सुनने को नहीं मिला। मुझे ताज्जुब है। मैं यही मानकर चल रहा हूँ कि ऐसे जिक्रवाली किसी भी प्रस्तुति तक में नहीं पहुँच पाया। क्योंकि नीरजजी के व्यक्तित्व का यह ऐसा पक्ष है जो मनोविज्ञान की दृष्टि से प्रायः सबको ही जोड़ता और प्रभावित करता है। नीरजजी के इस पक्ष को मैंने 1965-66 में जाना था। नीरजजी से मेरा प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क कभी नहीं रहा। सम्भव है, नीरजजी ने कालान्तर में इस रुचि से हाथ खींच लिए हों। किन्तु 1980 तक तो उनकी यह रुचि प्रभावी और आधिकारिक रूप से बराबर बनी हुई थी, यह मैं अधिकार भाव से कह पा रहा हूँ।
नीरजजी के व्यक्तित्व का यह पक्ष है - अंक ज्योतिष पर उनका प्रभावी अधिकार।
1965-66 में वे मनासा आए थे। दादा के मित्रों के आग्रह पर मनासा में एक कवि सम्मेलन हुआ था। नीरजजी भी उसमें आए थे। आए क्या थे, सच तो यह था कि नीरजजी को मनासा में बुलाने के लिए कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था। दादा, नीरजजी से छः बरस छोटे थे और उनके पाँव छूते थे। वे दादा से, ‘तू-तुकारे’ से ही बात करते थे। वे हमारे यहीं रुके थे।
यह कवि सम्मेलन गाँधी चौक में हुआ था। महीना-तारीख तो मुझे याद नहीं किन्तु मौसम गर्मी का था। कवि सम्मेलन लगभग सुबह तक चला था। लोगों ने नीरजजी को ‘पेट-भर’ सुना था। नीरजजी ने भी मानो अपना रचना-कोष चौराहे पर, जाजम पर उँडेल दिया था - जो जितना चाहे, बटोर ले।
बहुत अधिक तो मुझे याद नहीं आ रहा किन्तु चार गीतों के मुखड़े अब तक मन में बने हुए हैं। उन्होंने, ‘हम पत्ते तूफान के/ हम अनजाने, हम दीवाने/बंजारे वीरान के‘ से शुरुआत की थी। बाद में ‘अपनी बानी, प्रेम की बानी, हर कोई इसको ना समझे/या तो इसे नन्दलला समझे या इसे बृज की लली समझे’ सुनाया था। दार्शनिक-पुट वाला एक गीत और सुनाया था जिसके मुखड़े की पहली पंक्ति तो याद नहीं आ रही किन्तु दूसरी पंक्ति थी - ‘तो फिर मेरे श्याम बता दे, रीती गागर का क्या होगा?’ पण्डित नेहरू का निधन हो चुका था। नीरजजी ने पण्डितजी पर लिखी अपनी कविता ‘आज जनम दिन है रे बच्चों, उसी जवाहरलाल का’ चुटकियों पर ताल देते हुए झूम-झूम कर पढ़ी थी। अगली सुबह मनासा के अग्रणी वकील रतनलालजी बम सा’ब नीरजजी से मिलने घर आए थे। बातों ही बातों में उन्होंने नीरजजी से कहा कि उनकी नेहरूजी वाली कविता के सिवाय बाकी सारी कविताएँ बहुत अच्छी थीं। सुनकर नीरजजी ने पूछा था - ‘आप जनसंघी तो नहीं?’ सुनकर बम सा’ब सहम कर चुप रह गए थे। वे मनासा मे जनसंघ के प्रभावी व्यक्ति थे।
तब नीरजजी की अवस्था चालीस बरस की भी नहीं रही होगी। लेकिन वे ‘वात्’ से पीड़ित थे। मेरा छोटा भतीजा गोर्की छः-सात बरस का था। कवि सम्मेलन की अगली सुबह उसने नीरजजी के हाथ-पाँव खूब मस्ती से दबाए थे। गोर्की अपनी पूरी ताकत से उनके हाथ-पाँव दबाता तो ‘पुरुड़-पुरुड़’ आवाज इस तरह आती मानो जहाँ गोर्की दबा रहा है वहाँ से हवा निकल रही हो। यह आवाज सुनकर गोर्की को बड़ा मजा आ रहा था और इस ‘पुरुड़-पुरुड़’ से मिल रहे मजे के लालच में वह और अधिक उत्साह से, और अधिक जोर लगा कर नीरजजी के हाथ-पाँव दबाए जा रहा था।
हम, घर के और कस्बे से आए कुछ और लोग नीरजजी को लगभग घेरे हुए थे। गोर्की की ‘सेवा’ से खुश उन्होंने दादा से उसका पूरा नाम पूछा था। दादा ने बताया - ‘सुशील वन्दन।’ नीरजजी ने पूछा - ‘तो फिर यह गोर्की क्या है?’ दादा ने बताया था कि गोर्की के जनम के समय वे मेक्सिम गोर्की का उपन्यास ‘माँ’ पढ़ रहे थे। हमारे पिताजी भी जन्म कुण्डलियाँ बनाते थे। उन्होंने जो नामाक्षर सुझाया था उस पर कोई ढंग-ढांग का नाम नहीं सूझ रहा था। तब दादा ने कहा था कि इसका नाम बाद में तय कर लेंगे। तब तक इसे गोर्की के नाम से ही पुकारेंगे। सुनकर नीरजजी ने मन ही मन कुछ गणना की और कहा - ‘यह नन्दन-फन्दन तो नहीं चलेगा। इसका नाम गोर्की ही रहने देना। यही नाम इसे फलीभूत होगा।’ दादा ने पूछा था - ‘क्यों? कैसे?’ नीरजजी ने विस्तार से अंक ज्योतिष की गणना बताई थी। दादा कुछ नहीं बोले थे। गोर्की का आधिकारिक नाम सुशील वन्दन ही बना रहा। लेकिन इस नाम से वह शायद ही कभी, गलती से, पहचाना गया। वह गोर्की ही बना रहा और इसी नाम से पहचाना गया। गए दिनों गोर्की ने बताया कि उसने कानूनी खानापूर्ति कर अपना आधिकारिक नाम गोर्की बैरागी ही कर लिया है।
अंक ज्योतिष के आधार पर गोर्की के नाम की गणना करते-करते नीरजजी ने खुद के बारे में कहा था - “अपन भी इस ‘नीरज’ नाम की वजह से चल रहे हैं और चलेंगे। अपने हाथ और जेब में कुछ रहे न रहे लेकिन ‘नीरज’ का डंका बजता रहेगा।’ 1965-66 में कही उनकी बात की वास्तविकता आज शब्दशः खरी उतरी हुई है।
लेकिन, अंक ज्योतिष से जुड़ी उनकी अगली बात दादा ने तब भी सुनाई थी और जब-जब प्रसंग आया, हर बार सुनाई थी।
बात 1980 की है। दादा विधायक थे। एक बार किसी सिलसिले में दिल्ली गए हुए थे। वहीं नीरजजी से मुलाकात हो गई। देर तक बात करते रहे। बात करते-करते ही दादा से एक कागज माँगा। दादा ने, जो हाथ में आया वह कागज दे दिया। नीरजजी ने उस पर कुछ लिखा। कागज घड़ी कर, दादा को दिया और बोले - ‘यह बात इन्दिराजी तक पहुँचा देना। नहीं तो ऐसा नुकसान होगा कि जिन्दगी भर भरपाई नहीं हो सकेगी।’ नीरजजी के जाने के बाद दादा ने कागज खोला। इबारत पढ़कर हक्के-बक्के हो गए। दादा बार-बार कहते थे - ‘नीरजजी ने जो लिखा था, उसे इन्दिराजी तक पहुँचाना जितना जरूरी था उससे अधिक मुश्किल था कि ऐसी बात कैसे पहुँचाई जाए?’ नीरजजी ने लिखा था - ‘तेईस जून को संजय को घर से बाहर मत निकलने देना। घर से बाहर चला गया तो जीवित नहीं लौटेगा।’
एक तो खबर ऐसी और दूसरे, संजय गाँधी को घर में रोके रखना! गोया कि तूफान को कैद करना! दादा कहते थे - “बड़ी विकट दशा में छोड़ गए थे नीरजजी मुझे। इन्दिराजी एक बार मान ले लेकिन संजय मान ले? सम्भव ही नहीं। कागज मेरे पास ही बना रहा और वह हो गया जो नीरजजी लिख गए थे। बाद में नीरजजी से मुलाकात हुई तो वे चुप ही रहे थे। मुझसे कुछ नहीं पूछा था। मैंने एक बार कुछ कहने की कोशिश की तो बोले थे - ‘तेरी दशा जानता हूँ। काम इतना आसान होता तो मैं खुद ही न जाकर इन्दिराजी को कह आता? संजय की यही नियति थी। मैं और तू भला क्या कर सकते थे?”
मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि नीरजजी के वैश्विक सम्पर्कों में कोई न कोई तो मिल ही जाएगा जो नीरजजी के इस पक्ष से न केवल परिचित हुआ होगा अपितु उसके पास ऐसा ही कोई न कोई संस्मरण भी मिल जाएगा।
‘कविता की वीणा’ और ‘कविता के राजकुमार’ के व्यक्तित्व का यह पक्ष अपने आप में जितना रोचक है, जितना चौंकाता है उतना ही विस्तार की माँग भी करता हैं।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-07-2018) को "एक नंगे चने की बगावत" (चर्चा अंक-3041) (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवाकई बहुत रोचक और गूढ़ जानकारी है।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तेरे रंग में यूँ रंगा है - नीरज जी को श्रद्धांजलि - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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