अधूरी पूजा



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की चौबीसवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


अधूरी पूजा

बदल दिया भूगोल भले ही, भारत की तलवारों ने
बदल दिया इतिहास भले ही, सिंहों की हुँकारों ने
यौवन को नव गरिमा दे दी, प्राणों को परछाई दी
भारत को भी बेशक हमने, हिमगिरि की ऊँचाई दी
लेकिन लगता है यह पूजा, पूरी नहीं अधूरी है
बोलो रे, बोलो रे दिल्लीवालों, यह कैसी मजबूरी है?

(तुम) दो दिन और बनाये रखते, उस बलिदानी दौर को
(और) लगे हाथ निपटा ही देते, पिण्डी और लाहौर को।

हाँ, वह मेरी ही जिद थी, सुर था इस नादान का
(कि) ‘नक्शे पर से नाम मिटा दो, पापी पाकिस्तान का’
पूरा नहीं चुका है बदला, जननी के अपमान का
एक बार फिर से बदलेंगे, हम भूगोल जहान का ।

(ये) सेबर पेटन क्या रोकेंगे, विजयन्तों के शोर को
लगे हाथ निपटा ही देते, पिण्डी और लाहौर को
दो दिन और बनाये रखते, उस बलिदानी दौर को।

एक धमाका और लगाते, उस घनघोर नगाड़े में
(और) एक दाँव की और बात थी, जीते हुए अखाड़े में
कौन वजन था एक सूप का, भरे हुए उस गाड़े में
एक दिवस वैसे भी कम था, उस विजयी पखवाड़े में।

नाहक बचा लिया है तुमने, रणचण्डी के कौर को
लगे हाथ निपटा ही देते, पिण्डी और लाहौर को
दो दिन और बनाये रखते उस बलिदानी दौर को

जैसे बूढ़ी गंगा को तुम, तप्त जवानी दे आये
जैसे पद्मा की लहरों को, मस्त रवानी दे जाये
बंग-बन्धु को इतिहासों की, अमर निशानी दे आये
(और) मेघना के पानी को, अपना पानी दे आये।

वैसा ही कुछ दे देते उन, साढ़े पाँच करोड़ को
(और) लगे हाथ निपटा ही देते, पिण्डी और लाहौर को
दो दिन और बनाये रखते उस बलिदानी दौर को।

पूरब तो आजाद हो गया, अब पच्छिम की बारी है
(और) अस्ताचल पर सूर्य उगे तो, वाकई शान हमारी है
अपना हृदय टटोलो, बोलो, कल की क्या तैयारी है
मानवता को मुक्त कराना, किसकी जिम्मेदारी है?

(तो) एक बार फिर न्यौता दो तुम, उस बलिदानी भोर को
(और ) लगे हाथ निपटा ही डालो, पिण्डी और लाहौर को
दो दिन और बनाये रखते उस बलिदानी दौर को।

अरे अभी तो रणवीरों का, हर अरमान अधूरा है
संकल्पों के इतिहासों का, हर बलिदान अधूरा है
(इन) पैंसठ कोटि महामुण्डों का, शोणित-स्नान अधूरा है
जब तक पाकिस्तान है तब तक, हिन्दुस्तान अधूरा है।
 
सदा-सदा के लिये मिटा दो, नफरत की इस कोढ़ को
(और) लगे हाथ निपटा ही डालो, पिण्डी और लाहौर को
दो दिन और बनाये रखते उस बलिदानी दौर को।
-----
 


संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.