हे! लोकदेव नेहरू



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की उनतीसवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


हे! लोकदेव नेहरू

महक रही है और अधिकतम
गन्ध तुम्हारे प्रिय गुलाब की
शान्ति-कपोत तुम्हारे अनथक
उड़ते जाते हैं अनन्त में
पुनर्प्रतिष्ठा प्रजातन्त्र को देता है
ऊर्जित नव-यौवन
स्वप्न-सेतु नित उभर रहे हैं
अनजाने अभिनव क्षितिजों पर
भेद गरीबी औ’ दरिद्र का
अभी-अभी समझा है हमने
पूरे युग के बाद समझ में
आये हो तुम ।
पूरे युग के बाद समझ में
आया है उत्सर्ग तुम्हारा
प्रश्नों की आँखों में आँखें
डाल चुकी है जलती पीढ़ी
आस्थामय सम्पूर्ण चेतना
आज वचन देती है तुमको
जिस मिट्टी में बोये तुमने
प्राण स्वयं के
उस मिट्टी से जो उभरेगा
वह होगा संस्कार तुम्हारा।
लोकदेव!
यदि देख सको तो आज देख लो
कितना अनुशासित-पुष्पित है
उपवन पर उपकार तुम्हारा।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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