श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की तैंतीसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की तैंतीसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
आज के दिन
काँपता रहा पीपल का पत्ता
अडिग रहा तना
अविचलित रहीं जड़ें
उखडी हवाएँ देती रहीं थपेड़े
और सोचती रहीं मन ही मन
कि इस पीपल को
छेड़ें या नहीं छेड़ें?
पर बन्दूक की नली में पलता मौसम
‘सब कुछ ठीक है’
कहता रहा।
और वह वासुदेव
जी हाँ, वह पीपल
इस ‘सब कुछ ठीक है’ को
चुपचाप सहता रहा।
इस कम्पन को
उन्होंने माना अपनी विजय
इस अडिगन, अविचलन और चुप्पी को
वे समझते रहे कायरता
पीपल के अखण्ड-स्वधर्म-सूत्र को
तौलते रहे वे बन्दूक से
याने कि सत्ता की सनातन भूख से।
मैं हूँ वह थरथराता पत्ता
तुम हो अडिग तने
तुम्हारी संकल्प-सिंचित अस्मिता है
इस पीपल की जड़।
और ‘वे’?
‘वे’ केवल ‘वे’ हैं
हर युग के अपने-अपने ‘वे’।
मेरा हर कम्पन
बताता है हवा का रुख
और उनको है ये दुख
कि मैं स्थिर क्यों नहीं हो जाता?
सड़ाँध-भरी बन्दूक का
जयगान क्यों नहीं गाता?
अडिग रहो तुम,
अविचलित रहे तुम्हारी अस्मिता
थरथराता रहूँ मैं
तभी तो पूज्य रहेगा यह वासुदेव।
लिख लो मेरा वचन
आज के पावन क्षणों पर
कि
स्वस्तिक हमेशा बनेंगे तनों पर
मत्थे हमेशा टिकेंगे जड़ों पर
और टूटता पत्ता भी
प्रहार करता रहेगा
बन्दूक के जबड़ों पर।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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