तरुणाई के तीरथ



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की पचीसवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


तरुणाई के तीरथ

ओ सीमा के सजग पहरुओं!
ओ रे ओ सेनानियों!

तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे।

तुमने स्वर्णिम देश उगाया, हर दीवार ढहा कर
जननी का आँचल उजलाया, अपना खून बहा कर
तुमने केसर-कुंकुंम बनकर, माँडी वो रांगोली।
अपने आप ललक कर रुक गई, विजय-वधू बड़बोली।

रौंद गये सौ-सौ सदियों को, ये अभिमान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे
तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे।

अम्बर तो था किन्तु कहाँ, था रवि इतना उजियाला
यौवन तो था किन्तु कहाँ थी, नस-नस में रण-ज्वाला
प्राणों की पोथी पर तुमने, ऐसी जिल्द चढ़ाई
हर पाठक बन बैठा ‘भूषण’, हर श्रोता ‘बरदाई’।

बैरी तक गाते फिरते हैं, ये यश-गान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे
तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे ।

मानवता के महालक्ष्य को, देकर प्राण गये होे
शब्द-कोश को एक शब्द का, देकर दान गये हो
संगीनों की सेज सजाई, कर बारूद बिछौना
पारस-देह परसकर तुमने, माटी कर दी सोना

नहीं समाते हैं आँखों में, ये सम्मान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे
तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे।

सिद्ध किया है तुमने होता, पौरुष में भी पानी
सिद्ध किया है तरुणाई भी, होती है कल्याणी
भाष्य किया है नव भारत का, लोहू को दी भाषा
युद्धों को युगबोध दिया है, प्राणों को परिभाषा।

नव ऊषा के नव-गहने हैं, ये प्रतिदान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे
तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे।

इस थाती की आठ पहर हम, रखेंगे रखवाली
कभी नहीं पड़ने पायेगी, ये रक्ताभा काली
ओ मेरे अवतार फरिश्तों! हमको पंथ बताना
तुम पूर्वज हो, हम वंशज हैं, आशीषें बरसाना।

सौंपेंगे तुतली पीढ़ी को, हम वरदान तुम्हारे
आजीवन हम याद रखेंगे, ये एहसान तुम्हारे
तरुणाई के तीरथ बन गये, ये शमशान तुम्हारे।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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