क्रान्ति का मृत्यु गीत



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की छब्बीसवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


क्रान्ति का मृत्यु-गीत

मर गई क्रान्ति, शव-दाह करो
कन्धा दो चलो, श्मशान चलें।

दस-पाँच लफंगों ने मिल कर
षड़यन्त्र किया, तैयारी की
फुसला कर इसको फँसा लिया
हत्या कर दी बेचारी की
तिस पर भी वे इतराते हैं
खुद को निर्दाेष बताते हैं
जो होना था, सो हुआ, चलो
शव का करने सम्मान चलें
मर गई क्रान्ति शव-दाह करो
कन्धा दो चलो, श्मशान चलें।

जिन कन्धों पर शव जायेगा
उन कन्धों को ये तोड़ेंगे
जो शव-यात्रा में जायेंगे
उनको क्या जीवित छोड़ेंगे
कल कहलाते थे रक्त-दूत
अब कहलाते हैं क्रान्ति-पूत
मरघट तक इन हत्यारों की ही
करने को पहिचान चलो
मर गई क्रान्ति शव-दाह करो
कन्धा दो चलो श्मशान चलें।

ऊमर को जिनने गाली दी
पीढ़ी को जिनने भटकाया
शोणित से जिनने दगा किया
सपनों को जिनने भरमाया
प्रतिगामी युग की खटपट में
वे सभी मिलेंगे मरघट में
उन सबकी करें कपाल-क्रिया
भूतों के घर मेहमान चलें
मर गई क्रान्ति शव-दाह करो
कन्धा दो चलो श्मशान चलें।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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