गुलदस्ते! गमले! बगीचे और खेत




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की बीसवीं कविता 





गुलदस्ते! गमले! बगीचे और खेत

बने-बनाए गुलदस्ते
और सजे-सजाए गमले
लेकर पहुँच जाते हैं वे
अपने देवता के दरबार में
ठीक उस वक्त जबकि
बँटने को होता है प्रसाद।
समय को साधना
और अवसर को भँजाना
कोई उनसे सीखे।
वे करीने से सजाते हैं
अपने गमले
चतुराई से रखते हैं
गुलदस्ते
फूलों और कलियों का
बना देते हैं एक किला
और फिर शुरु होता है
प्रसाद की लूट का सिलसिला।
फूलों के किले में कैद देवता
न हिलने का न डुलने का
न चलने का न फिरने का
सारी दुनिया देखती है
यह दृश्य
गन्धमादन में
सक्षम देवता के
घिरने का।
इधर आप
करते रहते हैं
खेती फूलों की
तैयार करते हैं
बाग-बगीचे
उम्मीद करते हैं कि
कभी इधर से
गुजरेंगे देवता
देखेंगे आपके बाग-बगीचे
आँकेंगे फूलों की
खेती के करिश्मे को
प्रसाद न सही
मिलेगा आपको प्रोत्साहन।
लेकिन ऐसा होता नहीं है
न वे होने देते हैं।
क्योंकि अपनी
कातर प्रार्थनाओं में
वे समझा देते हैं देवता को,
‘हे देव!
ये वे ही फूल हैं
जो आप ही के लिए खिले हैं
हमें बड़े परिश्रम
और पुण्यों के बदले
मिले हैं।’
और फिर,
होने लगती है
नई सजावट
लूट लेते हैं सारा प्रसाद
उलझा लेते हैं आरतियों
और आर्त वचनों में
आपके देवता को।
इस तरह
आपका परिश्रम-पसीना
फूलों भरे खेत और
बाग-बगीचे हार जाते हैं
और
आपके ही फूलों से
सजे-धजे गमले
और गुलदस्ते
बाजी मार जाते हैं।
आप खेतों और
बगीचों को
ले नहीं जा सकते
वहाँ तक
गमले और गुलदस्ते
पहुँच जाते हैं
जहाँ तक।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली



















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