जीवन क्या है


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की दूसरी कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



जीवन क्या है

मैं ‘मूडी’ हूँ, ‘आधा पागल’ हूँ ऐसा ही आप कहा करते हैं।
यदा-कदा
जब-जब भी मैं मिल जाता हूँ
या कहीं आपको दिख जाता हूँ तो!
या कि कहीं मेरी चर्चा चल पड़ती है
तब भी आप इन्हीं दो शब्दों में
व्याख्या करते हैं मेरी
मेरे मन्द विचारों की
मेरे कुछ गूँगे गीतों की
या मेरे व्यवहारों की
और दया दर्शाते हैं मुझ पर
यह कह कर
‘वह मूडी है
आधा पागल है
उसकी तो अपने खुद से ही कुछ
अनबन है
ऐ समाज के चेतन तत्वों! क्षमा करो 
वह अधिकारी है आप सभी की दया-क्षमा का
उसका अपना भी कोई जीवन है?
छोड़ो उसका किस्सा खत्म करो....।’
जब आप किया करते हैं मेरी वकालात
यह क्षमा-दान, यह दया-दान दिलवाते हैं
तब सचमुच ही मुझको एहसास हुआ करता है
‘मैं मूडी हूँ
आधा पागल हूँ
मेरी मुझसे ही कुछ अनबन है
इस सामाजिक दया-क्षमा के निश्चेतन काँधों पर
लदा पड़ा
मेरा अपना भी कोई जीवन है?’
और आपकी बातों के आगे
समाप्ति का वह बोध-चिह्न
वह डेश, डैश के आगे चिह्नित पूर्ण विराम
‘नाइसली एडीटेड’ फिल्म में
ट्रिक इफेक्ट के पात्र सरीखा
खड़ा-खड़ा ही प्रश्न चिह्न बन जाता है
और आपकी बातों को देकर तलाक
मेरी स्मृतियों के सिहासन के आगे आकर तन जाता है
बल खाई उसकी कटि है
लाखों प्रश्न लपेटे उसकी भृकुटि है
फिर भी खुद के नीचे अंकित शंकित
स्याही की उस एक बूँद पर
ताण्डव के तोड़ों पर पैर पटकता है
मेरे अवचेतन अन्तर की सारी बर्फ गला देता है
और अध्ययन के मेरे उस अभ्रक हिमगिरि के
अस्थिपंजर की
वज्र बनाई जा सकने वाली महाअस्थि को
डमरू की उस डेढ़ ताल के कटु रव में
अट्टहास के साथ जला देता है
उस अखण्ड ताण्डव में ज्यों ही तालों पर सम आता
वही रात मुझ पर उछाल कर ठोकर से
कुछ निचला ओठ भींच कर दाँतों से
फूले नथुने आँख लाल ले
मेरी ओर मुखातिब होता है
दिग्दिगन्त को चीर कलेजा फाड़ कड़कती वाणी में
वह ताण्डवरत प्रश्न
प्रश्न करता है मुझसे
‘ओ मूडी!
ओ आधे पागल।
ओ समाज के दया-क्षमा के अधिकारी!
बतला जीवन क्या होता है?
कहिए! मैं क्या उत्तर दूँ?
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है






















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