युद्ध गीतों के आलोचकों से

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की अठारहवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



युद्ध-गीतों के आलोचकों से

आग के समन्दर में
मेरी बुलन्द आवाज पर तुम्हें आपत्ति है?
धन्यवाद।
मैं कैसे लिखता हूँ, पढ़ता हूँ या गढ़ता हूँ 
इससे तुम परेशान हो? शुक्रिया,
विकृत हैं मुझसे साहित्य के शाश्वत मूल्य? 
नमन करता हूँ,
उत्तर दो टूक है
सह लोगे?
सुन कर, समझ कर अपने-आप में रह लोगे?
तो सुनो,
वे मेरी बर्फ सुलगा रहे हैं
मैं अपना खून भी नहीं गरमाऊँ?
वे उधार लिये सुरों से दहाड़ रहे हैं
मैं अपने सुर में भी नहीं गाऊँ?
यह कैसे सम्भव है?

‘सत्यम्’ के दीवालिये ठेकेदारों!
‘शिवम्’ के नामर्द पहरेदाराें!
‘सुन्दरम्’ के विकृत सर्जनहारों!
मैं तुम्हें माफ करता हूँ।
तुम्हें बारूद और केसर
दोनों से एक सा डर है।
तुम्हारी शिराओं में खून नहीं, कुण्ठा बह रही है।
तुम्हारी घिघियाई हुई आवाज
साफ कह रही है कि
तुम अपना अस्तित्व बेच चुके हो।
तुम कल भी निकम्मे थे, आज भी निकम्मे हो और कल भी निकम्मे रहोगे।

मेरे दोस्त!
युद्ध कॉफी के प्यालों से नहीं
लहू से लड़ा जाता है।
टैंकों और बाम्बरों की छाती पर
मुर्दों का नहीं मर्दों का काव्य पढ़ा जाता है।
शत्रु ने माँ की छाती में संगीन गड़ा दी है
तुम कलम पकड़ने से कतराते हो?
और मैं अपने लहू को ललकारता हूँ तो
तुम मेरा गला दबाते हो?
लो दबाओ,
ये करोड़ों कण्ठ मेरा गीत गा रहे हैं।
लो अपनी मुर्दा उँगलियाँ बढ़ाओ,
ये करोड़ों बाजू मेरी उँगली पर उठ रहे हैं।
लो रोको,
ये करोड़ों पाँव मेरी लय पर बढ़ रहे हैं।
अरे तुम्हारे दम क्यों उखड़ रहे हैं?
तुम्हारी वासनाग्रस्त निर्जीव आँखें
इस देश का न तो अतीत ही देख पाई हैं
न भविष्य ही देख पाएँगी
तुम्हारी लकवा लगी जबान वर्तमान के
अंगारे क्या गाएगी?

जाओ,
‘बार’ के भीतर वाला ‘बैरा’ और बाहर वाला कुत्ता
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है
बहस करो, पियो,
मेरे विजय-दिवस पर तुम्हें मरना है
इसलिए आज जियो।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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