इष्ट मित्र




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की तेरहवीं कविता 






इष्ट मित्र

बुलाया था उन्होंने
इष्ट मित्रों सहित
और मैं
चला गया उनके घर
अपने सनातन, शाश्वत
इष्ट मित्र ‘अभावाें’ सहित।
अब
न मेरा कोई स्वागत
न कोई सत्कार
न कोई बात
न कोई चीत।
मैंने मिलना चाहा
अपने इष्ट मित्रों से
तो वे चले गए भीतर
मैं करता रहा प्रतीक्षा
बैठक के सन्नाटे में भी
खुसुर-फुसुर सुनाई दे रही थी
भीतर चलनेवाली समीक्षा
कि कैसा बुलाया था
और कैसा आ गया?
यह तो जैसा था
वैसा-का-वैसा आ गया!
पढ़कर मेरे मन की उदासी
मेरे मित्र अभावों ने
मुझे समझाया,
हाँ, हमारे ही कारण है
तुम्हारा यह अपमान
लेकिन श्रीमान्
अब तुम जैसा सहृदय मित्र
छोड़कर भी
हम जाएँ-तो-जाएँ कहाँ?
ऐसा हित-चिन्तक
पाएँ-तो-पाएँ कहाँ?
हमसे पल्ला झाड़ना हो तो
छोटी सी बात है कि
हमें भाव मत दो
इतना मान-सम्मान
लाड, प्यार, चाव और लगाव
मत दो।
हमारा सम्मान
पर्याय है तुम्हारे अपमान का
हममें से एक को भी
रखोगे साथ
तो ऐसा ही स्वागत होगा
श्रीमान् का।
तुम पाल रहे हो
तो हम पल रहे हैं
पूरी निष्ठा के साथ
कदम-कदम तुम्हारे
साथ चल रहे हैं।
तोड़ना चाहते हो दोस्ती
तो शौक से तोड़ लो
हम तो तुम्हें छोड़ेंगे नहीं
तुम्हीं हमें छोड़ दो
पर
जब तक अपनी हथेली पर
हौसले और हिम्मत की
नई रेखा
खुद ही नहीं बनाओगे
तब तक
इसी तरह खुद भी जियोगे
और हमें भी जिलाओग।
हम तो हैं ही मित्रजीवी
तुम जैसे दोस्तों की
दया पर हो जीते हैं
पराश्रित हम
कौन सा अपने घर का
खाते-पीते है!
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली



















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