सगे सम्बन्धी

 




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की सत्रहवीं कविता 





सगे सम्बन्धी

संकट से बड़ा सगा
और सुख से बड़ा दगा
कभी नहीं मिला।
मिला होता तो इन्द्रधनुष में
सात नहीं आठ रंग होते
और जिन्दगी जीने के
सत्र्रह सौ साठ ढंग होते।
पर
सुख ओठों पर
और दुख आँखों में
ज्यों ही आते है
कि सारे रामदुवारे तीन-तेरह
होे जाते हैं।
एक को आते और दूसरे को जाते
देखना भी एक उत्सव हैं।
एक की दिखे पीठ
और दूसरे का दिखे मुँह
तो फिर कैसी वाह और कैसी उँह!
सगा
लाख रोको रुकता नहीं है
और दगा?
अपनी करनी से चूकता नहीं है।
तब भी मैं नहीं समझ पाया कि
संकट का सुख भला या सुख का संकट
बुनने वाले ने भी बुन दी है कैसी झंझट
एक छूटे नहीं, दूसरा छोड़े नहीं
एक माथे ले नहीं, दूसारा माथे ओढ़े नहीं ।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग






यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’  ने  उपलब्ध  कराया  है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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