इस कथा-नायक के बारे में कुछ जान लीजिए (कच्छ का पदयात्री - बारहवाँ भाग)



कथा का यह भाग यात्रा का ब्यौरा नहीं है। इस रस-भंग के लिए मुझे क्षमा कर दें। मुझे लगा कि आप इस रोमांचक यात्रा का समापन अंश पढ़ें उससे पहले ‘दादा’ श्री गोविन्दरावजी नाडकर्णी और उनके परिवार के बारे में कुछ जान लें। 

दादा से और ‘नाडकर्णी परिवार’ से मेरा भी जीवन्त सम्पर्क रहा है। मेरी सक्रिय पत्रकारिता के महत्वपूर्ण बरस मन्दसौर में बीते। दादा तो मन्दसौर में बसे हुए थे ही। शुक्ला कॉलोनी में निवास था उनका। कभी वे रास्ते में मिल जाते तो यदा-कदा मैं उनके घर चला जाता। दादा सदैव ही मालवी में ही बात किया करते थे। बोली की मिठास तो अपनी जगह होती ही थी, उनकी आवाज मक्खन जैसी नरम और शहतूत जैसी मीठी थी। बात करते समय ‘भैया’ उनका सामान्य सम्बोधन हुआ करता था। वे जब ‘भैया’ बोलते तो लगता था गोद में उठाकर, दुलराकर बात कर रहे हैं।


दादा श्री गोविन्दरावजी नाडकर्णी और जीजी मथुराबाई

दादा की कुल छह सन्तानें थीं - पाँच बेटे और एक बेटी। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं - वसन्त नाडकर्णी (सन्तु), अनन्त नाडकर्णी (गोटू), मनीषा कोपरगाँवकर (बेबी), दामोदर नाडकर्णी (दामू), बलवन्त नाडकर्णी (बब्बू) और भास्कर नाडकर्णी (बालू)। विधि का विधान है कि अब केवल सन्तु भैया और दामू ही हमारे साथ हैं। सन्तु भैया और गोटू से मेरा जीवन्त सम्पर्क रहा। गोटू तो मेरा सहपाठी रहा। बहुत अच्छा खिलाड़ी था। ‘शैतान’ की सीमा तक बहुत ही चंचल, शरारती और नटखट था वह। यार-दोस्तों की बैठकों को गुलजार कर देता था। सन्तु भैया और उनकी जीवनसंगिनी शोभा, शिक्षा विभाग में थे। एक काल-खण्ड में उनकी पदस्थापाना मेरे गाँव मनासा में रही थी। तब उनके घर खूब आना-जाना हुआ करता था।

सन्तु भैया और शोभा से मेरा रिश्ता बड़ा रोचक रहा। दादा के कारण वे मेरे ‘सन्तु भैया’ हैं। उनका विवाह रामपुरा के कर्णिक परिवार में हुआ है। रामपुरा मेरा ननिहाल है। सो, शोभा, मेरे मामा की बेटी, मेरी ‘अक्का’ (दीदी) हुई। इस ‘मीठे मेल’ के कारण सन्तु भैया के परिवार में मेरा अनूठा नामकरण हुआ।


सन्तू भैया श्री वसन्त नाडकर्णी का परिवार

सन्तु भैया जब मनासा में थे तब उनका बेटा बण्टी बहुत छोटा था। वह मुझे क्या कह कर बुलाए? मैंने ही सुझाव दिया - “मैं इसका काका भी हूँ और मामा भी। दोनों को मिला कर एक नया नाम बना लेते हैं - ‘कामा’।” सो, जब-जब मैं सन्तु भैया के घर जाता, बण्टी मुझे ‘कामा’ ही कहता। अभी भी, इस यात्रा वृतान्त को ब्लॉग पर देने के लिए फोटू और जानकारियाँ देते समय बण्टी ने मुझे, दशकों बाद ‘कामा’ ही सम्बोधित किया। यतीन्द्र इस समय इक्विटास स्माल फाइनेन्स बैंक के रीजनल मैनेजर के पद पर, नागपुर में कार्यरत है। लेकिन कृपया ध्यान दें! बण्टी, आप सबके लिए नहीं, केवल मेरे लिए (और शायद, परिवार में भी) बण्टी है। आप सबके लिए वह यतीन्द्र वसन्त नाडकर्णी है। 


प्रपौत्र लक्ष्य नाडकर्णी के साथ दादा श्री गोविन्दरावजी नाडकर्णी 



अपनी अगली तीन पीढ़ियों के साथ दादा
बाँए से - दादा श्री गोविन्दरावजी नाडकर्णी, पौत्र यतीन्द्र नाडकर्णी, 
यतीन्द्र की बाँहों में प्रपौत्र लक्ष्य नाडकर्णी और एकदम दाहिने पुत्र वसन्त नाडकर्णी

ईश्वर की असीम अनुकम्पा से दादा और जीजी ने अपनी चौथी पीढ़ी की किलकारियों का सुख भोगा। जीजी का नाम मथुराबाई था। दादा का निधन 2000 में मन्दसौर में और जीजी का निधन 2013 में नागपुर हुआ। 

सन्तु भैया और शीला अक्का अपने बेटे यतीन्द्र के साथ नागपुर में रह रहे हैं। सन्तु भैया अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं। इस प्रसंग पर यतीन्द्र ने इसी 31 जुलाई को बड़ा जलसा आयोजित किया था। सन्तु भैया ने मुझे भी बुलाया। लेकिन मैंने सधन्यवाद क्षमा-याचना कर ली। नाडकर्णी-परिवार सारी जानकारियाँ और फोटू यतीन्द्र ने ही उपलब्ध कराए। 


स्व. अनन्त नाडकर्णी (गोटू) का परिवार


श्री दामोदर नाडकर्णी (दामू) का परिवार

मेरी हार्दिक इच्छा और कोशिश रही कि दादा की सारी सन्तानों के चित्र यहाँ होते। यतीन्द्र ने कुछ मोबाइल नम्बर उपलब्‍ध कराए थे। मैंने अपने तईं यथासम्भव कोशिशें की। जितना कुछ मिल पाया उसमें से अधिकाधिक अनुकूल चित्र यहाँ दे रहा हूँ। दादा की पोती, बलवन्त (बब्बू) की बिटिया, निकिता नाडकर्णी ने कुछ चित्र उपलब्ध कराए। 


दादा के चौथे बेटे, बलवन्त (बब्बू) के वाक्दान (सगाई) समारोह के इस चित्र में नाडकर्णी परिवार के अधिकांश सदस्य दिखाई दे रहे हैं। चूँकि प्रसंग वाक्दान का था तो इसमें बलवन्त की सुसराल पक्ष, जोशी परिवार के सदस्य और उनके कुछ पारिवारिक मित्र भी इस चित्र में दिखाई दे रहे हैं।  मैं सबका परिचय सविस्तार दे रहा हूँ।

फर्श पर, बाँये से - कुसुम जोशी, मंजू तिवारी, मधुबाला बलवन्त नाडकर्णी, दादा की पुत्री मनीषा कोपरगाँवकर, शोभा वसन्त नाडकर्णी, सुमन जोशी

खड़ी हुई बच्चियाँ, बाँये से - वसन्त (सन्तु) की बेटी भावना करोड़ी,  मनीषा की बेटी जयश्री (स्वाति) क्षीरे, मनीषा की ही बेटी नीतू मेहरूनकर। जीजी की गोद में मनीषा की तीसरी बेटी तृप्ति (हेमू) जोशी।

कुर्सी पर बैठे हुए, बाँये से - जीजी मुथुराबाई नाडकर्णी, दादा गोविन्दरावजी नाडकर्णी, दादा के बड़े भाई गोपालरावजी नाडकर्णी, गोपालरावजी की पत्नी द्वारिकाबाई नाडकर्णी और पास में खड़ा हुआ, यतीन्द्र वसन्त नाडकर्णी (बण्टी)।

पीछे खड़े हुए - अपने बेटे कान्तेश जोशी को उठाए हुए, बलवन्त के साले बाबूराव जोशी  दादा का सबसे छोटा बेटा भास्कर (बालू) नाडकर्णी, दादा का चौथा बेटा (जिसकी सगाई का यह चित्र है) बलवन्त (बब्बू) नाडकर्णी, दादा के दामाद मनोहर कोपरगाँवकर, दादा का सबसे बड़ा बेटा वसन्त (सन्तु) नाडकर्णी, दादा का दूसरा बेटा अनन्त (गोटू) नाडकर्णी और जोशी परिवार के मित्र मनोहर लाल शर्मा। 
 

ऐसे  नजर आते थे दादा अपने चौथे काल में 
 

हाँ! यतीन्द्र से सम्पर्क कराया, रामपुरावाले भाई मुस्तफा मादेह ने। उन्होंने ही यतीन्द्र का नम्बर दिया। भाई मुस्तफा यदि यह कड़ी नहीं जोड़ते तो पता नहीं ये सब बातें और फोटू आप तक कब पहुँचते! उन्हें अन्तर्मन से बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार। ‘सोशल मीडिया’ का होना ऐसे समय में बड़ा सुखद लगा।

इस रोमांचक और लगभग अविश्वसनीय यात्रा-कथा के नायक के बारे में न्यूनतम जानकारियाँ मुझे जरूरी लगीं। लेकिन किस सन्दर्भ-प्रसंग से देता? इसलिए, सारी सूचनाएँ और चित्र देने के लिए मुझे इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं सूझा। इसी सद्भावना और सदाशयता के अधीन मैंने आपका यह रस-भंग किया है। मैं एक बार फिर आप सबसे क्षमा चाहता हूँ।  

यात्रा-वृतान्त की अन्तिम कड़ी पढ़ते समय कृपया भूल न जाएँ कि यह वृतान्त दादा श्री बालकवि बैरागी ने लिखा है और इस वृतान्त का ‘मैं’ दादा बालकविजी ही हैं।

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किताब के ब्यौरे -
कच्छ का पदयात्री: यात्रा विवरण
बालकवि बैरागी
प्रथम संस्करण 1980
मूल्य - 10.00 रुपये
प्रकाशक - अंकुर प्रकाशन, 1/3017 रामनगर,
मंडोली रोड, शाहदरा, दिल्ली-110032
मुद्रक - सीमा प्रिंटिंग प्रेस, शाहदरा? दिल्ली-32
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी



यह किताब, दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती रौनक बैरागी याने हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराई है। रूना, राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य है और इस किताब के यहाँ प्रकाशित होने की तारीख को, उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।
  

 

 
 

   
   
      
   
 

  

 
 

 
 

 
   
      
 

 

 

 

   

 
 
 
 

  
  
  
   
   

   
  

    
 
      
 

      

 
 
 
 
  
 
  
 










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