दो टूक


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की पहली कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।




दो टूक

जवाब नहीं आपके सयानेपन का
ठीक फरमाते हैं आप
कि ‘ये सूरज सनकी है
बादल बेवकूफ है
पवन पागल है
मिट्टी मूरख है
और आकाश अन्धा है ।
जो सबको
एक-सा प्रकाश
एक-सा मेह
एक-सी छुअन
एक-सी फसल
और एक-सा क्षितिज देते हैं।’
आप ही हैं ‘बुद्धि सागर’
जो विषमता का घोषणा-पत्र
चौराहे-चौबारे पढ़कर
इन्सानियत की बलाएँ लेते हैं।
मानवता को आपका योगदान
इतिहास की थाती है
लगे रहो अपना पेट भरने में
मौसम क्या बार-बार आता है?
क्या कहा?
मैं भी आपका साथ दूँ?
याने समता का मुँह नोचूँ?
विषमता की जय बोलूँ?
और, शोषण की सोचूँ?
ना.....ना.....
यह मुझसे नहीं होगा
मैं अपनी जगह दुरुस्त हूँ
मुझे मत सुधारो
मेरा पीछा छोड़ो
अपने पंथ पधारो।
मुझे सुधारने में कहीं
तुम न बिगड़ जाओ
सूरज, पवन, मेघ,
धरती और आकाश की तरह
कहीं तुम न उजड़ जाओ।
जाओ जाओ अपना रास्ता लो
इन्सानियत का नहीं
अपने पेट का वास्ता लो।
मैंने तय कर लिया है कि
मैं अकेला चलूँगा
इस अधेरे में भटकूँगा
इस सनक में जलूँगा।
नाराज क्या होते हो
यूँ क्या गुर्राते हो?
क्या तुम्हारा जोर है, जबरदस्ती है 
सिर पर क्या चढ़े चले आते हो?
हाथा-पाई करते हो?
कर लो
पर पहले अपना सयानापन
अपनी जेब में भर लो
मुझे बद्तमीजी पर आमादा मत करो 
दूसरों की तरह उपदेश मुझ पर लादा मत करो।
जरूरी है उपदेश, जानता हूँ
लेना पड़े तो लूँगा
पर अपने मन से लूँगा
दीवाला नहीं निकल गया है दुनिया का
चपर-चपर बन्द करो
किसी चिरन्तन से लूँगा।
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‘दो टूक’ की दूसरी कविता ‘जीवन क्या है’ यहाँ पढ़िए 


संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















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