दिन वासन्ती

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की पचीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



दिन वासन्ती

दिन वासन्ती, रात वसन्ती
युग का पुण्य प्रभात वसन्ती

                -1-

पनघट-पनघट रस की बातें
ऋतुराजा की चढ़ी बारातें
दिशा-दिशा से बरस रही हैं
रँग-रस की बरसात वसन्ती
दिन वासन्ती रात वसन्ती
युग का पुण्य प्रभात वसन्ती

                 -2-

बगिया लीपे किरण किशोरी
हाँ, हाँ उस सूरज की छोरी
ऋतु-कुँवरी सरवर में उतरी
लेने को जलजात वसन्ती
दिन वासन्ती रात वसन्ती
युग का पुण्य प्रभात वसन्ती

                -3-

भँवरे गाएँ, कोयल बोले
कोंपल ने सब घूँघट खोले
बगिया-बगिया होने लग गए
यौचन के उत्पात वसन्ती
दिन वासन्ती रात वसन्ती
युग का पुण्य प्रभात वसन्ती
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























 


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