युद्ध और मेहँदी

 
  

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की सोलहवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



युद्ध और मेहँदी 
 

युद्ध और मेहँदी में क्या फर्क है?
एक स्वर्ग है, एक नर्क है।
नहीं जी! ऐसी बात नहीं है
बेशक दोनों की जात एक नहीं है।
मेहँदी रचाई जाती है
युद्ध रचाया जाता है
मेहँदी लगाई जाती है
युद्ध लगाया जाता है
मेहँदी सुखुन देती है
युद्ध खून देता है।
मेहँदी प्यार है, सिंगार है
युद्ध प्रहार हैं, संघार है
कुछ मात्राओं और लिंग का भेद है
पर फिर भी कितना अभेद है।
देखिए न?
मेहँदी का नतीजा लाल
युद्ध का नतीजा लाल,
मेहँदी संस्कृतियों का इतिहास है
युद्ध इतिहासों की संस्कृति है
मेहँदी में भाँति-भाँति की भाँतें
युद्ध में भाँति-भाँति की पाँतें
मेहँदी रचती है
युद्ध रचता है
और दिल पर हाथ रख कर कहिए
दोनों की मार से कौन सलामत बचता है?
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।






















1 comment:

  1. SavindraSingh ShahooOctober 13, 2025 at 1:59 PM

    This poem was there in our 12th standard syllabus and I was searching for it since so many days. Very beautiful lines. Thank you for sharing.

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