मेरे बच्चों

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की बारहवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।






मेरे बच्चों

- एक -

मना कर दिया है मेरे बच्चों ने
वह सब कुछ सहना
जो मैंने सहा है
जड़ है मेरा बाप उनकी नजरों में
और मैं जड़ मूर्ख।
चुक गई है उनकी सहनशीलता
संस्कार निरर्थक
और परम्परा हास्यास्पद लगती है उन्हें।
ऊब गये हैं उपदेशों से वे
देश की व्याख्या वे अपने हिसाब से करते हैं
इतिहास, भूगोल और अतीत के सन्दर्भ
आकृष्ट नहीं करते उन्हें।
याने कि बच्चे अब बच्चे नहीं रहे
वे कुछ और हो गये हैं
या बन गये हैं।
नारों की नालायकी और सभाओं की
संक्रामक लफ्फाजी पर थूकते हैं वे!
इतनी सयानी बातें
मैं भी नहीं करता था उनकी उम्र में
और मेरे पिता तो कतई नहीं!
तो क्या ये आवारा हो गये हैं?
क्या वे गुण्डे हैं?
क्या वे गैरजिम्मेदार और गद्दार है
नहीं! नहीं नहीं!!!
हजार बार नहीं!
क्योंकि यदि वे गुण्डे हैं
गैरजिम्मेदार और गद्दार हैं
तो मैं उनका भी बाप हूँ
शायद इसीलिए इस सारे परिवेश मैं
मैं वाचाल होकर भी चुपचाप हूँ ।

- दो -

तुम्हें हक्क है मेरे बच्चों!
कि तुम वह सब नहीं सहो
मैंने सहा है
क्योंकि मेरे पुंसत्व का प्रमाण
अब सिर्फ तुम्हारे हाथ का नुकीला पत्थर रहा है,
मात्र नुकीला पत्थर।
न यह मेरी खोज है न निराशा
न दे रहा हूँ मैं तुम्हें कोई भाषा
या अभिलाषा।
पर अब तुम कनपटियाँ तोड़ते जाओ
मेरे पुंसत्व को भविष्य से जोड़ते जाओ
अपना रास्ता खुद चुनो
और मेरी बिलकुल मत सुनो।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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