बणजारा

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की पन्द्रहवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।








बणजारा

जणा खेताँ में कजरी गई थी वणाँ खेताँ की पकी गी जुवाराँ
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो
वेगो अईजा रे बणजारों

एक दन आयो बारद लेईने लोंग-सुपारी देईग्यो
दाख बदामाँ चार चखई ने बैरी बैर बसईग्यो
हिवड़ो परखणों तू कई जाणे ऐ बणजारा रे
हिवड़ो परखणो तू कई जाणे लोंग सुपारी परखणहारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारों

सास जेठाणी नणदल म्हारी मन की गाँठ-गठीली
देवराणी ने खटके म्हारी काजर कंकू टीली
जोग उतारी जा जोंगण को ऐ बणजारा रे
जोग उतारी जा जोगण को ऐ जोबण का निरखणहारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

असमानी फुलड़ा अलसी का अबतो झड़वा लागा
पाड़ोसण का चीर बसन्‍ती तड़के पड़वा लागा
कोयल का घुघरा वजीग्या ऐ बणजारा रे
कोयल का घुघरा वाजीग्या, वाज्या नौपत ढोल नगारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

पटवार॒याँ का वागाँ में थने कई कई-कई कौल कर्‌या था
काची ऊमर का वचनाँ में पाका रंग भर॒या था
कूण बिलमायो तू भूलीग्यो ऐ बणजारा रे
कृण बिलमायो तू भूलीग्यो बालपणा का व्ही कौल कुँँवारा
पगडण्‍डी पर वई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

सब सोवे म्‍हारी सुरत सहेली गगन मण्‍डल में जावे
दुखियारी का मन की वाताँ चाँद पे लिख-लिख आवे
सन्देसा लिखी-लिखी ने रँगी द्या ऐ बणजारा रे

सनन्‍्देसा लिखी लिखी ने रँगी द्या चन्‍दाजी का वागा कारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

सौतड़ थारी बावड़ल्याँ पर नीर पियेगा बणजारो
जगदम्बा थारे बाँधे रे पालणा अमर्‌यो वे चुड़लो थारो
निरमोहीला ती की जे एक पल ऐ सोतड़ली ऐ
निरमोहीला ती की जे एक पल देखी ले ऊ चाँद सितारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

मनक बणई ने कूण जनम को बैर लीदो रे म्हारा दाता
अणी वीचे तो दुखियारी ने दाख-बदाम बणाता
लेई ने फिरता खेड़े-खेड़े ऐ बणजारा रे
लेई ने फिरता लारे-लारे अणबोली ने बेचणहारा
पगडण्‍डी पर वेईने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

कंचन लोभी तू धन जोड़े म्हू मोतीड़ा ढारूँ
जिवला ने हिवला का दिवला रे पिवला बोल कटा तक बारूँ
यूँ आवा में मोड़ो व्हे तो ऐ बणजारा रे
यूँ आवा में मोड़ो व्हे तो सपना में ही अईजा ठगारा
पगडण्‍डी पर वेई ने अब तो वेगो अईजा रे बणजारा

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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