मेंहदी मती लगाव

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की बाईसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।





मेंहदी मती लगाव

मेंहदी  मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में
बेन हुँवारा हाथाँ में
तू मेंहदी मती लगाव

जावद की मेंहदी घोरी ने बैठी है गोरी-गोरी राताँ में
जाणूँ हूँ थारा दो ई हाथ है थारी नणदी का हाथाँ में
जीवड़ो थारो अरझी र॒यो है तरे-तरे की भाँताँ में
पण खम्मा म्हारी बेन
वाटको परमों तो हरकाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ  म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

गाम गोयरे आजादी की अई पोंची है असवारी
देख-देख ने करे अचम्‍भो भोरा-ढारा नर-नारी
गावो बधावा, चढ़ा चढ़ावा अबे परीक्षा है थारी
हाथ पकड़ अणी आजादी को
घर-घर में पोंचाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

थारा देस का नवा महल की नींव भरवा लागी रे
अणी नींव के मुट्ठी-मुट्ठी मेहनत सबती माँगी रे
अणी घड़ी में पड्यो सेज पर देख थारो बड़ भागी रे
छैल भमर ने झकझोरी ने
नारी धरम निभाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

जगाँँ-जगाँ कामे लागीग्या थारा जामण जाया रे
मेहनत को मद माथे चमके मस्ती में मस्ताया रे
होंठ हुकावे, पाणी चावे, चावे ठण्‍डी छाया रे
जलझारी देई आ वीरा ने
पालव छन्‍यो छवाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

मेहनत को मोरत अईग्‍यो है सोरत वेईगी है भारी
आज पसीनो अणपूजो है माँगी र॒यो पूजा थारी
तोक फावडो तोक कुदारी पग पग कर दे पँतवारी
मेंहदी, फूँँ,दी काजर में
यू मोरत मती चुकाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रुपारा हाथाँ में

खेत-खेत और नद्दी-नद्दी मगरे-मगरे जाणों है
दिशा- शा में दारिद्दर ती जंगी जुद्ध मचाणो है
हाथ- थेरी में छाला को अद्भुुत ब्‍याव रचाणों है
खुशहाली की लाड़ी लई ने
पेलाँ सास केवाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

थारा दन आया है, थारी राताँ अम्मर रेणी है
खूब रचेगा थारी मेंहदी पण दो वाताँ केणी है
अपणी सुध ले वण से पेलाँ जामण की सुध लेणी है
न्हीतर सब झूठा है थारा
रकड़ी, रतन, जड़ाव
तू मेंहदी मती लगाव ऐ म्हारी बेन रूपारा हाथाँ में

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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