हार्‌या ने हिम्मत

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की उनतीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।







हार्‌या ने हिम्मत
(पण्डित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु पर।)

भरी रे दुपेरी में सूरज डूब्यो
वेईग्यो घुप्प अँधारो रे राम
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम

घरती को धीरज धक-धक घूजे
गगन वसीका ताणे रे
इंडो फूटीग्यो टींटोड़ी को
जिवड़ा की जिवड़ो जाणे रे
तो बीती बिसारो ने धीरज धारो
यूँ मती हिम्मत हारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....

आँबा लगईग्यो ने हाँटा उगईग्यो
काँटा का नखल्या तोड़ीग्यो
भूखा ने धाणी ने गूँगा ने वाणी
देई ने हठीलो पोढ़ीग्यो
या तितली पे बिजली पड़ी अण वीती
गायाँ ने छोड़ीद्यो चारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....

मन्दर रोवे ने मज्जित रोवे
रोवे है गुरुद्वारा रे
गिरजाघर का आँसू न्ही टूटे
रोवे धरम हजाराँ रे
मनकपणा ने नींदड़ली अईगी
वेईग्यो बन्द हुँकारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....

तीरथ अपणो ते करीग्यो है
जग ने मोवणहारो रे
दरसण करवा ने पाछे अईर्‌यो
आखो ही जग दुखियारो रे
पाछे वारा की पीड़ा जाणो ने
आगे पंथ बुहारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....


पग पग पर पँतवार॒याँ वणई ने
पंथ वणईग्यो पाको रे
सत का सरवर और सरायाँ
बाँधीग्यो बेली थाँको रे
(अब) काँधा की कावड़ छलकी न्‍ही जावे
बिछड़े न्ही संग यो रुपारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा सँगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में..... 

वेगा-वेगा चालो तो पंथ कटेगा
रात कटेगा अँधारी रे
आँसूड़ा पोंछो तो आँखा में उतरे
पूनम की असवारी रे
ठेठ ठिकाणे पोंची ने अपणा
काँधा को बोझ उतारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में

एक असते है तो एक उगे है
मत यो नेम बिसारो रे
सूरज डूब्यो तो चाँद उगेगा
न्हीं तो उगेगा तारो रे
नछंग अँधारो कदी भी नही रेगा
पूरब आड़ी  नाऽरो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....
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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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