बेटा की बिदा

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की सोलहवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।







बेटा की बिदा

हाँझी जरमाँ की मेंहदी भी जामण की न्‍हीं भाँगी 
हरज पूजा की साड़ी भी खूँटी पर न्‍हीं टाँगी
आज हवेराँ तक नावण ने नेग चुकायो थाँको
अरे लालजी अणछत्‍तॉं ही गेलो पकड्यों क्‍यॉं को
म्हारा गेंद हजारी रे
म्हारा लाल हजारी रे
जामण आँसू ढारे रे
म्हारा कुँवर कन्हैया रे

कई तो आया ने कई चाल्या कई देखी दुनियाँ ने
कई तो माँ की गोद बसई ने लाड़ कर्‌या कई माँ ने
हेंबूका हुका रेईग्या है नवा बिछाणा थाँ का
पीहर का लुगड़ा आँसू में आला करद्या माँ का
या मत रीत चलावो रे
रथ पाछो पलटावो रे
म्हारा फूल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

आँखाँ ही आँखाँ में व्हाला वाताँ कूण करे रे
वगर अरथ की वाताँ पर अब हामी कूण भरे रे
बड़े परोड़े काची नींदा बोलो कुण जगावे
कूण काँचरी को अणमातो अमरत अबे खुटावे
यो अमरत कें मेलू गा रे
के पाछो कसरूँ दूँगा रे
म्हारा गेंद हजारी रे

कुण पेरे ई कड़ा कड़ूल्या, कूण खंगारी पेरे रे
भिड़े पलाणा कूण काठ का हाथी-घोड़ा घेरे रे
साँझ संगाती लेई ने बराती क़ुण अबे निकरेगा
बाँझ पड़ोसण छाने-छाने लट कण की कतरेगा
कण ने सात दजावेगा
आसा कूण पुरावेगा'
म्हारा गेंद हजारी रे
म्हारा लाल हजारोरे

बिन गुम्बज को मन्दर रेईगी म्हू पापण दुखियारी
अणपूजी मू रत कोसी ली परबस उबो पुजारी
वगर चाँद को पूनम रेईगी वगर दीवे दीवारी
चूँप लुटीगी हाय चुडला की टीली वेईगी भारी
ममता गूँगी वेईगी रे
जातरा मँहगी वेईगी रे
म्हारा गेंद हजारी रे
म्हारा लाल हजारी रे

भाटे-भाटे जईने अब म्हूँ कण ती धोग देवाडूँ
रतजग्गा में पुरबज गाताँ गोड़े कणे होवाडू
वरत वास की केण्याँ में हूँकारो कृूण भरेगा
मन्दर जाती वेराँ में अब लारे कूण पड़ेगा
पल्‍लो कूण पकड़ेगा रे
उठ-उठ कूण पड़ेगा रे
म्हारा गेंद हजारी रे
म्हारा लाल हजारी रे

कूण तोतली बोली में दादी ती राड़ करेगा 
कण का बलद्या दादाजी को लीलो बाड़ चरेगा
मामेरा का झगल्या टोपी पाछा कसरूँ दू गा
अम्बा की पूजा एकल्ली कसरूँ हाय करूगा
झूठो कूण रिसाबेगा
जामण कणे मनावेगाँ
म्हारा लाल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

काल जणी ढूली ऐं परण्‍या व्हा माचो ढारी री
धूरा का घर की मेड़ी में व्हा दिवलो बारी री
ओ सायर बनड़ाजी वण की टीली कसरूँ भाँगू
काले दी जो सासू साड़ी पाछी कसरू माँगू
तमोरी बिड़ला लईर्‌यो रे
लखारो पाछो जईर्‌यो रे
म्हारा लाल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

सूरज किरण तक ती कुम्हलातो थो जो लाल हजारी
अगन पछेड़ी आज ओढ़वा की करर्‌या है त्यारी
कोई तो ढाबो अणी पंथी ने अरे कोई तो हमझावो
म्हारी नही मानेगा ढेठो कोई तो हाय मनावो
म्हारी ऊमर लेईलो रे
या जाती जिनगी देई दो रे
म्हारा लाल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

अरे विधाता थारे आँगण दूँगा रोज बुहारी
ऐंठा बासण थारा कुटम्ब का माँजेगा दुखियारी
भले उजाड़ी दे रे दाता तू सब ऑंबा म्हारा
छोई उगई दे खेर खेजड़ा और धतूरा कारा
म्हारो दिवलो बरवा दे
थारी गऊ ने चरवा दे
म्हारा लाल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

थाँ पर वारी ने पी लेती सब दुखड़ा दुनियाँ का
हाय म्हने भी लारे लेईलो पूत जीवेगा थाँ का
लाल पगॉं म्हू थाँके लागूँ अतरो तो हमजई दो
थाँ को गरो भरईर्‌यो वे तो आँखाँ में ही केई दो
म्‍हूँ छाती कणे लगऊँगा रे
म्‍हूँ कण के काँधे जऊँगा रे
म्हारा लाल हजारी रे
म्हारा गेंद हजारी रे

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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