क्या कहें

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की तेईसवीं कविता
यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।




क्या कहें

उजालों के दावेदार
उजाला लाकर उसे पीने बैठ गये
भले मानस.! अपनी ही शर्तों पर
जीने बैठ गये।
अब उन्हें कौन समझाये कि
उजाला पीने की नहीं
जीने की चीज है।
पीने की चीज है अँधेरा
और लो, दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है
उसका घेरा।
गाँवों के पाँवों पर रेंगता हुआ वह
अलावों तक जा पहुँचा है
वे कभी नहीं स्वीकारेंगे कि
यह शुरु हुआ है उन्हीं की परछाइयों से
जैसे कि अंगद-चरण तक लड़खड़ा जाते हैं
निकम्मे हाथों की अँगड़ाइयों से।
जब सूरज अपने ही उजाले के दम्भ से
त्रस्त हो जाता है
तो यार! चार ही घड़ी में अस्त हो जाता है।
यह उजाला, यह सवेरा
तुम हम सबको मुबारक हो
पर इसे निर्लज्ज बन कर इस तरह पीना छोड़ो
कछुए की तरह अपने ही खोल में
जीना छोड़ो
अपने-अपने उजालों की तरह
अपना-अपना अँधेरा भी होता है
तुम इसे स्वीकार कर लो तो
सदियों के द्वारा दुलारे जाआगे
वर्ना गुदवा लो अपने माथों पर कि
तुम उनसे भी बुरी मौत
मारे जाओगे।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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