नौ जवान आ गये सारे जहान केे



श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
         ‘गौरव गीत’ का इक्कीसवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 


नौजवान आ गये सारे जहान के
(विश्व-युवक-संघ के लिए एक गीत)

नौजवान आ गये सारे जहान के
नौजवान.....नौजवान.....
नौजवान आ गये सारे जहान के

                                - 1 - 

जाति, धर्म, देश की दीवार तोड़ दी
वर्ग, वर्ण की गगरिया, जी हाँ फोड़ दी
दूरियाँ बढ़ाए, उस जुबाँ को छोड़ दी
            सबका एक दीन है, एक है जबान
                        नौजवान.....नौजवान.....
                        नौजवान आ गये सारे जहान के.....

                                - 2 -

हम अमन के गीत हर कदम पे गायेंगे
सत्य और न्याय का नेजा उठायेंगे
एटमों की आग को हँसकर बुझायेंगे
            सबकी ये जमीन है, सबका आसमान
                        नौजवान.....नौजवान.....
                        नौजवान आ गये सारे जहान के.....

                                - 3 -

कह रहे हैं आज हम सारे जहान से
हक्क है मनुष्य को, जिये वो शान से
युद्ध से घृणा करे, रहे ईमान से
            दर्द सबका एक है, एक जैसी शान
                        नौजवान.....नौजवान.....
                        नौजवान आ गये सारे जहान के.....

                                - 4 -

बार-बार इस तरह मिला करेंगे हम
मंजिलों की ओर यूँ, चला करेंगे हम
हँसते-गाते फूल से खिला करेंगे हम
            सब यहाँ समान हैं, सब यहाँ महान
            नौजवान.....नौजवान.....
            नौजवान आ गये सारे जहान के.....
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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