नेहरू के सिपाहियों




श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
          ‘गौरव गीत’ का तेरहवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 




नेहरू के सिपाहियों

                                    नेहरू के सिपाहियों, सेवादल के भाइयों
                                    देश की पुकार है, बढ़ो-बढ़ो, आगे बढ़ो

- 1 -

                                                छोटी सी ये फौज है
                                                इसमें कितनी मौज है
                                                इस पर कितना बोझ है, 
                                                                बढ़ो-बढ़ो.....

- 2 - 

                                                महलों को ठुकराना है
                                                झोंपड़ों में जाना है
                                                मजदूरों से कहना है
                                                                बढ़ो-बढ़ो.....

- 3 -

                                                भारत के मजदूर जो
                                                हिम्मत से भरपूर जो
                                                कह दो उनसे, शूर हो
                                                                बढ़ो-बढ़ो.....

- 4 -

                                                आँधी हो या हो तूफान
                                                बापूजी का है वरदान
                                                देश की खातिर दे दो जान
                                                                बढ़ो-बढ़ो.....
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‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ यहाँ पढ़िए।

‘गौरव गीत’ का बारहवाँ गीत ‘नौजवानों आओ रे’ यहाँ पढ़िए

‘गौरव गीत’ का चौदहवाँ गीत ‘चलो चलें सीमा पर मरने’ यहाँ पढ़िए

मालवी कविता संग्रह  ‘चटक म्हारा चम्पा’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।  

‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।  

‘वंशज का वक्तव्य’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिल

‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।  


गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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