आकाश उतना ऊँचा नहीं है

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की इक्कीसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।



आकाश उतना ऊँचा नहीं है

फेंक दो उपसर्ग
तोड दो दुदुंभियाँ
देवत्व के ये अन्तिम प्रतीक
शोभा नहीं देते तुम्हें
मात्र नहीं हो कण्ठ-शेष
केवल धड़
यदि कहीं हो कन्धों पर तो
उठाओ अपना सिर
आकाश उतना ऊँचा नहीं है
जितना कि लगता है
देखो तो सही अपने पाँवों को
उनमें से हर एक अपनी धरती पर
आकाश को ऐड़ी से दबाये खड़ा है
तुम एक बार
बन कर तो देखो मनुष्य
पाओगे कि
मनुष्य, देवों से लाख गुना
बड़ा है ।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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