कामणगारा की याद

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की बारहवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
 







कामणगारा की याद
  

उतारूँ थारा वारणा ऐ म्हारा कामणगारा की याद
कामणगारा की याद
ऐ म्हारा बणजारा जी की याद
उतारूँ थारा वारणा ऐ म्हारा रूप ठगारा की याद

राजदुलारी म्हारा राज रतन की
खबराँ लई म्हारा पियूजी का मन की
निछराऊँ जोबन का जगमग सपना
वारूँ हिलोराँ हटीला बालापण की
यूँ मत जऊँँ-जऊँ कर नखरारी.
छनीएऽक छानी-मानी रे छणगारी
तो उतारूँ थारा वारणा ऐ म्हारा कामाणगारा की याद

नेणा की काँवड़ को नीर चढ़ाऊँ
हिबड़ा को रातो-रातो हिंगलू लगाऊँ
रूड़ा-रूड़ा रतनारा थाक्‍या पगाँ से
ओठाँ हो ओठाँ ती मेंहदी रचाऊँ
ढब, थारे चन्दा को चुड़लो चिराऊँ
नौलख तारा का बिछिया पेराऊँ
ने उतारु थारा वारणा ऐ म्हारा मन मतवारा की याद

कसकां को नानो-नानो काजर घालूँ
झीणी-झीणो साँसाँ को ओढ़ाऊँगा सालू
टूटी निसाँसाँ का रथ में राणी
बिरहा का बागण में रमवा लेई चालूँ
रोवे म्हारो चम्पो रोवे रे चमेली
छनिएऽक छानी मानी रे म्हारी हैली
तो उतारुँ थारा बारणा ऐ म्हारा साजनियाँजी की याद

कण-कण ने याद करे है बणजारो
कण-कण के कागद लिखे कामणगारो
आखी-आखी रात जगावे जो म्हाने
फेरे है कतरी पाँगत्याँ ऊ निठारो
के कतरी दाण गणे है ऊ तारा
लेई ले छल्‍ला ने हथफुल म्हारा
उतारूँ थारा वारणाँ  ऐ म्हारा कामणगारा की याद

हाँची-हाँची बात बतई दे म्हारी राणी
कटे कटे पियूजी ने पियो ठण्‍डो पाणी
कसा-कसा बागाँ में ग्यो म्हारो भँवरो
कटे-कटे कलियाँ की छबियाँ लजाणी
याद कुण आयो उठताँ ही पेली
केई दे तो हिवड़े लगऊँ म्हारी हेली
ने उतारु थारा वारणा ऐ म्हारा कामणगारा की याद

म्हूँ  याद अई के न्‍ही अई या केई जा
यूँ कई ऊबी है थोड़ी तो बेइऽजा
पियूजी की आँखाँ में आँजी दे तो
ले म्हारा नैणा की नींदडली लेईऽजा
लेई जा म्हारा हिवड़ा की हाय हठीली
दीजे म्हारा पियाजी के ललवट पर टीली
तो उतारुँ थारा वारणा ऐ म्हारा कामणगारा की याद

ऐ म्हारी लाला बई, ऐ म्हारी फुलाँ बई
म्हारे सिवा सपना में कृण-कुण और अई
रोक्यो कण ने गेलो म्हारा पवन पिया को
कण-कण ने चम्पा की कलियाँ सुँघई 
कूण म्हारा राजा संग चौपड़ खेली
थने म्हारा होगन केऽई दे म्हारी हेली
ले उतारूँ थारा वारणा ऐ म्हारा कामणगारा की याद

अई है तो दो दन रे राणी रम्भा
थारे लारे कटी जागा दन म्हारा लम्बा
जणा कसा पाप फूटया है म्हारी माड़ी
ढरके है आँसूड़ा ने ररके औरम्भा
मती जाव थारो जनम जस गऊँगा
तू केऽ गा वणसे थारो ब्‍याव रचऊँगा
उतारु थारा वारणा ऐ म्हारा कामणगारा की याद

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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