भाई मेरे

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की चौबीसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।




भाई मेरे

भाई मेरे!
सूरज को इतना मत माँजो
कि उसकी कलई खुल जाये
मूरत को इतनी मत धोओ
कि उसकी छवि धुल जाये ।
जिन्हें नहीं होता कोई काम
वे ही करते हैं ऐसा
जैसा कि कर रहे हो तुम-
बनने में कमेले की दुम
कितने निकम्मे सिद्ध हो गये हो!
हंस या परमहंस बनते-बनते
गिद्ध और निषिद्ध हो गये हो
सूरज जो अविराम
और मूरत जो अभिराम है
अपने आप में
उन्हें क्या जरूरत है
तुम्हारे स्पर्श की?
याने कि इस दिशाहीन
निकम्मे और नाटकीय
संघर्ष की?
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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