लोकरुद्र का लोकनृत्य

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की पचीसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।



लोकरुद्र का लोकनृत्य

तुम्हारे अभिषिक्त कंकर
शंकर बनने के बदले
और अधिक पत्थर हो गये
सख्त और परुष
अपूज्य और अनाकर्षक!
शिवमहिम्न स्तोत्र
जब तुमने स्वर और ध्वनि का भंग करके
गाया था
मैं तभी चिल्लाया था कि
यह अभिषेक नहीं है।
तुम्हारे संकल्प शिव नहीं
अशिव हैं!
पर तुम चीखते रहे
अभिषेक मग्न दीखते रहे ।
परिणाम?
भ्रष्ट हो गया पंचामृत
नष्ट हो गया पंचपात्र
कंकर भयंकर हो गये
तुम्हारे अशिव संकल्प
समूचे कैलाश के लिए प्रलयंकर हो गये
छटपटा रहा है त्रिशूल
डिमकने को है डमरू
ताण्डव टूटना चाहता है
त्रिनेत्र त्रिशूलपाणि का
समाधिभंग हुआ ही समझो।
आसन्न है शिवाग्नि।
पंचानन का प्रकोप
त्रिलोक में भी तुम्हें शरण नहीं लेने देगा।
यह जनेश्वर! यह लोकरुद्र!!
आ गया है लोकनृत्य पर।
तुम्हारे अमूर्त अनंग
और अपराधी भस्मासुर को
पहिले अट्टाहस कर-कर के
नचायेगा
खुद लोकापमान का गरल विष
नृत्य कर-कर के पचायेगा
देखना सिर्फ यह है कि
इस आकाशी आग से
तुम्हें अब कौनसा
लोकनायक बचायेगा?
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053 




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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