हीया हूनी रूपारी

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की तीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।








हीया हूनी रूपारी


हाय कसी पीड़ा खटकीरी जोद्धा, थारा हिवड़ा में
फरे एकलो लेईने पो रो उणियारो 
मुरझईगी सरवर में व्हा शैवालण जणा कणी घड़ी
और पँखेरू गावे कोन्ही गीतडलो कामणगारो

हाय कसी पीड़ा खटकीरी जोद्धा थारा हिवड़ा में
जो तू  अतरो लटक्यो-लटक्यो, दुबरो-दुबगो देखावे
खेताँ में की हाक कटी ने, धान घराँ में पोंचीग्यो
ताली (गिलहरी) की कोटर में दाणा धानचून का न्‍हीं मावे

देखी र्‌यो हूँ थारो मुखड़ो, जणे कमलणी घायल है
जणे ताब में तपी-तपी ने नरम पाँखड़्याँ कुम्हलईगी
गालां पर ती ऊनो पसीनो टप-टप थारे चूचे है
पल पल मुरझातो जावे ने काया थारी हूकईगी

म्हने मिली थी एक डावड़ी, लीला मुलक रुपारा में
भर जोबन में ऐसी लागे, जणे परी की जायी थी
लम्बा-लम्बा केश वणी का, ढबे न्‍हीं पग थरक-थरक
काँकड़ली आंखड़ल्याँ जण में मदमाती रतनाई थी

फुलड़ा की एक मारा पोईने माथे वण के गूँथी दी
बाजूबन्द बणायो वणके फूल कँदोरो महकारी
प्यार भरी एक मादक तिरछी चितवन म्हारे पर न्हाकी
और भरी ली मीठी-माठी एक वणी ने सिसकारी

म्हारा अबलक घुड़ला ऊपर, म्हने वणी ने बेठाई
आखो दन भर म्हने और तो, कई भी न्‍हीं नजराँ आयो
कॉं के वणने झूम-झूम, घुड़ला पर यें-वें नमी-नमी
जीव भरी ने किन्नरियाँ को मीठो गीत घणो गायो

मों लई ने द्या घणा ह॒वादू फल मीठा-मीठा
और रसीला कन्द-मूल ने, वन को हेँत हिया भायो
बोली एक अनोखी अदभुत बोली में 
के थारे ऊपर शुद्ध पवित्तर प्यार म्हने है निछरायो

म्हने वणी का डूँगर का अद्भुत वागाँ में व्हा लेईगी
और वटे व्हा रोई, गैरी, ठण्‍डी साँसाँ लेई-लेई ने
पचे वणी का रस भीना ओठाँ पर चुम्मा चार जड्या
म्‍हने वणी का मिरग मनोहर, मोहक नेणां मूँदी ने

मों होवई द्यो बटे वणी ने मीठी थपक्याँ देई-देई ने
याद हाल तक खटके जण की, देख्यो सपनो एक असो
ऊ ही आखर सपनो थो, जो देख्यो शीतल परबत को
मोह-मुलक में फेर कदी न्‍हीं देख्यो सपनो म्हने वसो

देख्या कतरई जोद्धा राजा, राजकुँवर मोट्यार वटे
गारा जैसा पीरा पट्‌ट पड़ी ग्या था जोबन धारी
चिल्लाया व्‍ही थारे ऊपर, रूप मोहिनी न्‍हाकी ने
दास वणई ने बाँधी लई या, हीया हूनी रूपारी

हाँझ पड्याँ देख्यो के वण का, भूखा होठ खुल्या, हाल्या
और भयकर सबदाँ में मों चेतायो
जाग्यो म्हूँ तो शीतल परबत के ऊपर
मोह मुलक छेटी म्हूँ नजराँ आयो

अणी बले म्हू बण बनवासी, ऊजड़ बन में वास करूँ
फरू एकलो लेईने पीरो उणियारो
मुरझईगी सरवर में व्हा शैवालण जाणा कणी घड़ी
और पँखेरू गावे कोन्ही गीतड़लो कामणगारो

(जॉन कीट्स की प्रसिद्ध रचना ‘ला बैले डेम सॉस मर्सी’ ‘हृदयहीन रूपसी’ याने ‘निर्मम सुन्दरी’ का मालवी अनुवाद।)

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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